क्रिसमस पर निबंध
👉 नई कक्षा में पहला दिन पर निबंध
हर देश में धर्मप्रवर्तकों का जन्म दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। श्रीराम , श्रीकृष्ण , गौतम बुद्ध , हजरत मुहम्मद , महावीर , नानक आदि की तरह ईसाई धर्म के प्रवर्तक जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह ) की जन्म - जयंती भी सारे ईसाई संसार में पूरे उल्लास और उत्साह से मनायी जाती है।
क्रिसमस की तिथियाँ - ईसा मसीह के जन्म की अनेक तिथियाँ प्रचलित थी। यही कारण है कि क्रिसमस मनाने की भिन्न - भिन्न तिथियाँ चलती रही। तीसरी शताब्दी तक लोग 20 मई को उनका जन्मदिन मानकर क्रिसमस मनाते रहे। फिर , यह अप्रैल में मनाया जाने लगा। यह सिलसिला चौथी शताब्दी तक चलता रहा। मध्ययुग से 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाने की परंपरा स्थायी रूप से शुरू हुई, जो आजतक चल रही है।
👉 विज्ञान के लाभ - हानि पर निबंध
ईसाई संप्रदाय और क्रिसमस - भिन्न - भिन्न देशों के ईसाईधर्म में समय - समय पर अनेक सम्प्रदायों का जन्म हुआ। फलतः क्रिसमस के आयोजन में विघ्न - बाधाएँ आयीं। 1644 ई° में इंग्लैंड के एक ईसाई संप्रदाय प्यूरिटन ने कानून बनाकर इसकी निंदा की और इस पर रोक लगा दी। 18वीं शताब्दी में क्रिसमस ने एक नया रूप ग्रहण किया और इसे फिर से प्रकाश में आने का अवसर दिया। अब यह माना गया कि क्रिसमस न केवल आनंद , उल्लास और मनोरंजन का साधन है , बल्कि गरीब लोगों की सेवा और उनके उत्थान में भी सहायक है। इसके द्वारा दीन - दुखियों की सेवा होनी चाहिए। इसके विपरीत स्कॉटलैंड का प्रिजबिटेरियन संप्रदाय क्रिसमस से उदासीन रहा। इस उतार - चढ़ाव के बावजूद सारे ईसाई संसार में 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार अपने - अपने ढंग से मनाया जाता है। ईसाई समाज में इसका न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक महत्त्व भी है। सच तो यह है कि क्रिसमस ईसाईयों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहार है।
👉 मेरी दिल्ली हरी - भरी पर निबंध
क्रिसमस का त्योहार - क्रिसमस का त्यौहार कहीं बच्चों की मंगलकामनाओं के लिए , कहीं पारिवारिक सुख - शांति के लिए और कहीं जातीय भाईचारे के रूप में मनाया जाता है। हर ईसाई देश में क्रिसमस की अपनी विशेषताएँ और प्रथाएँ है , अपने रीति - रिवाज है। इस अवसर पर कुछ दिन पहले से ही दीपावली की तरह घरों की सफाई और सजावट होती है। लोग अपने मित्रों और सगे - संबंधियों को अपने घर बुलाते है और प्रीतिभोज का आयोजन करते है। रात में घरों को रंग - बिरंगे बल्बों से सजाते है और रौशनी करते है। लोग नए - नए कपड़ों से सुसज्जित होकर समारोह में शामिल होते है और गिरजाघर जाकर प्रभु ईसा की पुण्यस्मृति में प्रार्थनाएँ करते है। इस दिन कई जगह गिरजाघरों में ईसा के बचपन को दर्शाने वाली दर्शनीय झाकियाँ बनाई जाती है। गिरिजाघरों में बाइबिल के कुछ अंश पढ़े और गाये जाते है। पादरी सबको आशीर्वाद देते है। इस प्रकार हर जगह भाईचारे का वातावरण होता है और हँसी - ख़ुशी में क्रिसमस समाप्त होता है।
उपसंहार - क्रिसमस एक प्रकार का लोकतांत्रिक सम्मलेन है , जहाँ गरीब , अमीर , छोटे - बड़े , बूढ़े - जवान , स्त्री - पुरुष और बच्चे एक स्थान पर जमा होकर प्रभु ईसा की जयंती मनाते है और सामाजिक एकता का परिचय देते है। यह त्योहार बहुत - सी बातों में ईद , दशहरा आदि से मिलता - जुलता है, क्योंकि धर्म एक है , उसकी चेतना भी एक होती है , सिर्फ उसकी अभिव्यक्ति के ढंग और रीति - रिवाज अलग - अलग होते है।