अगर आपको भी संस्कृत समझने में परेशानी हो रही है या फिर आपको संस्कृत समझ में नहीं आती तो आप यहाँ से समझ सकते है। Textual Solution के शिक्षक ने संस्कृत कक्षा 8 के प्रथमः पाठः को कुछ इस तरह से अनुवाद किया है कि आप बहुत ही आसानी से समझ सकते है।
['सुभाषित' शब्द 'सु + भाषित' इन दो शब्दों के मेल से संपन्न होता है। सु का अर्थ सुन्दर , मधुर तथा भाषित का अर्थ वचन है। प्रस्तुत पाठ में सूक्तिमञ्जरी , नीतीशतकम, मनुस्मृतिः , शिशुपालवधम , पंचतंत्रम से रोचक और विचारपरक श्लोकों को संगृहीत किया गया है ]
शब्दार्थ :-
- गुणाः - बहुत सारे गुण
- गुणज्ञेषु - गुणियों में
- भवन्ति - होते है
- ते - वे लोग
- निर्गुणं - निर्गुण को
- दोषाः - अवगुण , दोष
- सुस्वादुतोयाः - स्वादिष्ट जल वाली
- प्रभवन्ति - निकलती है
- आसाद्य - पहुँच कर
- नद्यः - नदियाँ
- अपेयाः - अपेय
गुणा गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति। ते (गुणाः) निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। (यथा) सुस्वादुतोयाः नद्यः प्रभवन्ति , (परं) समुद्रं आसाद्य (ताः) अपेया भवन्ति।
सरलार्थ :-
गुणवान व्यक्तियों में गुण , गुण ही होते है। वे (गुण) गुणहीन व्यक्तियों को प्राप्त करके दोष बन जाते है। (जिस प्रकार ) नदियाँ स्वादिष्ट जल से युक्त निकलती है , परन्तु समुद्र में पहुंचकर (वे) पीने योग्य नहीं होती है।
शब्दार्थ :-
- साहित्य - रचना
- विहीनः - रहित
- साक्षात् - वास्तव में
- पुच्छ - पूँछ
- विषाण - सींग
- तृणं - घास
- हीनः - रहित / बिना
- अपि - भी
- खादन - खाता हुआ
- भागधेयं - भाग्य
- जीवमानः - जीवित है
- परमम - बड़ा / परम
सरलार्थ :-
साहित्य , संगीत तथा कला से रहित (व्यक्ति) वास्तव में पूँछ व सींग के बिना पशु है , जो घास न खाता हुआ भी (पशु के समान) जीवित है। यह उन पशुओं का अत्यधिक सौभाग्य है।
शब्दार्थ :-
- लुब्धस्य - लालची का
- नश्यति - नष्ट हो जाता है
- पिशुनस्य - चुगलखोर का
- मैत्री - मित्रता
- नष्टक्रियस्य - जिसकी क्रिया नष्ट हो
- अर्थपरस्य - जो धन को अधिक महत्त्व देता है
- व्यसनिनः - बुरी लत वाले का
- कृपणस्य - कंजूस व्यक्ति का
- सौख्यम - सुख
- प्रमत्तः - प्रमाद से युक्त
- सचिवः - मंत्री
- नराधिपस्य - राजा का
लुब्धस्य यशः , पिशुनस्य मंत्री , नष्टक्रियस्य कुलम , अर्थपरस्य धर्मः , व्यसनिनोः विद्याफलं , कृपणस्य सौख्यं , प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य राज्यं नश्यति।
सरलार्थ :-
लालची (व्यक्ति) का यश , चुगलखोर की मित्रता , जिसके कर्म नष्ट हो चुके है उसका कुल , धन को अधिक महत्त्व देने वाले व्यक्ति का धर्म , बुरी लत वाले का विद्या का फल , कंजूस का सुख तथा जिसके मंत्री प्रमाद (आलस्य) से पूर्ण है (ऐसे) राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।
शब्दार्थ :-
- पीत्वा - पीकर
- तु - अथवा
- कटुकम - कड़वा
- मधुरम - मीठा
- माधुर्यम - मधुर
- एव - ही
- जनयेत - पैदा करती है
- असौ - यह (स्त्री)
- मधुमक्षिका - मधुमक्खी
- तथैव - उसी प्रकार ही
- वचः - वचन को
- सृजन्ति - निर्माण करते है
- सूक्त - कहावत / मुहावरा
असौ मधुमक्षिका कटुकमं मधुरमं (वा) रसमं समानां पीत्वा माधुर्यम एव जनयेत। तथैव सन्तः समसज्जनदुर्जनानां वचः श्रुत्वा मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।
सरलार्थ :-
(जिस प्रकार) यह मधुमक्खी कड़वे अथवा मधुर रस को समान रूप से पीकर मीठा रस ही उत्पन्न करती है। उसी प्रकार सन्त (साधु) लोग , सज्जन और दुष्ट लोगों के वचन को एक समान रूप में सुनकर मधुर (मीठा) सूक्ति रूप रस का निर्माण करते है।
शब्दार्थ :-
- विहाय - छोड़कर
- पौरुषं - मेहनत को
- दैव - भाग्य /भगवान
- अवलंबते - सहारा है
- प्रासाद - महल
- सिंघवत - शेर की तरह
- तस्य - उसका
- मूर्ध्नि - सिर पर
- तिष्ठन्ति - बैठते है
- वायसाः - कौवे
जो मेहनत को छोड़कर सिर्फ भाग्य का सहारा लेते है। वह महल में बने हुए शेर की तरह , उसके सिर पर कौवे बैठते है।
शब्दार्थ :-
- पुष्प - फल
- पत्र - पत्ते
- फल - फल
- छाया - परछाई
- मूल - जड़
- वल्कल - छाल
- दारुभिः - लकड़ी
- धन्या - धन्य है
- महीरुहा: - सागवान के पेड़
- येषां - जिनके
- विमुखं - विरुद्ध
- यान्ति - होते है
- नाथिर्न: - याचक नहीं
फूल , पत्ते , फल , परछाई , जड़ , छाल , लकड़ी से युक्त सागवान के पेड़ धन्य है। जिनके याचक विरुद्ध नहीं होते है।
शब्दार्थ :-
- चिन्तनीया - सोचना चाहिए
- विपदाम - विपदा
- आदावेव - पहले से ही
- प्रतिक्रियाः - समाधान
- कूपखननं - कुआँ खोदना
- युक्तं - उचित
- प्रदीप्ते - जलने के बाद
- वह्निना - अग्नि / आग
- गृहे - घर
विपदा आने से पहले ही समाधान सोच लेना चाहिए। घर में आग लगने पर कुआँ खोदना उचित नहीं है।
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NCERT Solution for Class 8 Sanskrit Chapter 1 - सुभाषितानि