Essay on Mahatma Gandhi in Hindi - महात्मा गाँधी पर निबंध

 महात्मा गाँधी 

Mahatma Gandhi Par Nibandh
महात्मा गाँधी - निबंध 

महात्मा गाँधी का परिचय देना सूर्य को दीया दिखाना है। वे हमारे देश के उन महापुरुषों में एक थे , जिनसे राष्ट्रीय जीवन का नया इतिहास तैयार हुआ है। भारत की स्वतंत्रता उनकी ही अथक सेवाओं का शुभफल है। हम उन्हें कैसे भूल सकते है ? वे हमारे रोम - रोम में बसे हैं। भारत की मिट्टी से उनकी आवाज आ रही है , सारा आकाश उनकी अमर वाणियों से गूँज रहा है। वे राम , कृष्ण , बुद्ध , शंकर और तुलसी - जैसे दिव्य पुरुषों की तरह घर - घर में बसे है। 

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर , 1869 ई○ को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता करमचंद गाँधी राजकोट रियासत के दीवान थे। उनकी माता ने उनका लालन - पालन बड़े ही अच्छे ढंग से किया था। बालक गाँधी पर , जिनका असली नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था , उनकी धार्मिक माता का बड़ा गहरा प्रभाव था। वे आगे चलकर 'गांधीजी' के नाम से प्रसिद्द हुए। 

उनकी शिक्षा गाँव के एक विद्यालय में शुरू हुई। सन 1887 में उन्होंने इंट्रेंस की परीक्षा पास की। वे पहले पढ़ने - लिखने में बहुत तेज नहीं थे। उन्होंने स्वयं लिखा है कि 'मैं बहुत झेंपू लड़का था , मेरी किसी से मित्रता नहीं थी। स्कूल में अपने काम से काम रखता। घंटी बजते ही स्कूल पहुँच जाता और बंद होते ही घर चल देता। किसी अन्य लकड़े से बातें करना मुझे अच्छा नहीं लगता था , क्योंकि मुझे डर लगता रहता था कि कहीं कोई मुझसे दिल्लगी न कर बैठे।' बीड़ी पीना , चोरी करना , जेब से पैसे चुराना , मांस खाना इत्यादि बुरी आदतों के वे शिकार हो गये थे। लेकिन आगे चलकर गाँधीजी ने इन सारी बुराइयों को एक - एक कर के छोड़ दिया। सन 1891 ई○ में बैरिस्टरी पास कर वे इंग्लैंड से भारत लौटे। बंबई में वे बैरिस्टर हुए , लेकिन उनकी बैरिस्टरी नहीं चली। 

एक बार वे एक मुक़दमे के काम से दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ उन्हें बड़ी - बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने देखा कि वहाँ भारतीयों के साथ अच्छा व्यव्हार नहीं हो रहा है। गाँधीजी को बड़ी ठेस लगी। उन्होंने वहाँ 'सत्याग्रह' शुरू किया और उन्हें सफलता भी मिली। 

गाँधीजी सन 1914 में भारत लौटे। उन्होंने देश की गरीबी और गुलामी देखी , अँग्रेजों के अत्याचार देखे और उनका मनमाना शासन देखा। उनकी आँखें खुली और उन्होंने देशसेवा का व्रत लिया। देश को अंग्रेजों से आजाद कराने की प्रतिज्ञा की और तब जुट गए इस महायज्ञ में। सन 1917 से वे अंग्रेजों के अत्याचारों का खुलकर विरोध करने लगे। चंपारण में उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध पहला सत्याग्रह - आंदोलन छेड़ा। वे किसानों के नेता बने। देश के कोने - कोने में गए। जनता ने उनका स्वागत किया। सन 1942 की महान क्रांति हुई। 'करो या मरो' के नारे से सारा देश जाग पड़ा। गाँधीजी के साथ बहुत - से नेता जेलों में बंद कर दिए गए। लेकिन , जनता रुकी नहीं, झुकी नहीं। अंत में , अंग्रेजों को लाचार होकर 15 अगस्त 1947 ई○ को भारत को आजाद करना पड़ा। लेकिन जाते - जाते वे देश को दो टुकड़ों - भारत और पाकिस्तान - में बाँट गए। इससे गांधीजी बड़े दुःखी हुए। 

देश को आजाद करानेवाले राष्ट्रपिता बापू को देश के ही एक अभागे नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 की शाम को पिस्तौल चलाकर मार डाला। सारी मानवता का नेता उठ गया। हम अनाथ हो गये। लेकिन , 'गांधीजी की जय' आज भी हमारे प्राणों में नया जोश और उत्साह भरता है। आज बापू की कहानी युग - युग की कहानी बनकर रह गयी है। वे मरकर भी अमर है। 

Previous Post Next Post