कृष्ण की स्थिति - Lord Krishna Status | Law Of Nature

 प्रकृति के नियम : कृष्ण की स्थिति

Cosmic Lord krishna Status

नमस्कार भक्तों ! अभी तक हमने जाना प्रकृति के नियम , ईश्वर तथा कर्म के नियम , कर्म बंधनों को कैसे तोड़े , नियंता एवं सर्वेश्वर कृष्ण के बारे में , ईश्वर तथा उनकी शक्तियों के बारे में। और आज हम योगीराज श्रीकृष्ण की स्थिति के बारे में जानने की कोशिश करेंगे। तो चलिए शुरू करते है। 

ईशोपनिषद कहती है , "यद्यपि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान अपने धाम में स्थित है , फिर भी वे मन से अधिक तेज है और वे दौड़ मे सबों से आगे निकल सकते है। शक्तिशाली देवता भी उन तक नहीं पहुँच पाते। यद्यपि वे एक ही स्थान पर रहते है, किन्तु वे वायु तथा वर्षा प्रदान करने वाले 'देवताओं' को नियंत्रित  करते है। वे श्रेष्ठता में सर्वोपरि है।" ब्रह्मसंहिता में कुछ इसी प्रकार कहा गया है - गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतः। यद्यपि कृष्ण सदैव गोलोक वृन्दावन में रहते है , किन्तु साथ ही साथ वे समस्त जीवों के हृदयों में भी रहते है। 

गोलोक में कृष्ण को कुछ भी नहीं करना होता। वे केवल अपने संगियों - गोपियों , ग्वालबालों , अपनी माता तथा पिता , अपनी गौवों तथा बछड़ों आदि - के साथ आनंद लेते है। वे पूर्णतया स्वतंत्र है और उनके संगीजन तो उनसे भी अधिक स्वतंत्र है, क्योंकि जब भी उन पर कोई संकट आता है , तब उनकी रक्षा की कुछ चिंता कृष्ण करते है। किन्तु उनके संगियों को कोई चिंता नहीं होती। वे तो सिर्फ यही सोचते है , "ओह ! कृष्ण तो है ही। वे हमारी रक्षा करेंगे।" जब पांच हज़ार वर्ष पूर्व वृन्दावन , भारत में कृष्ण ने अपनी लीलाएँ कीं , तो वे नित्य ही अपने ग्वालबाल सखाओं तथा गौवों एवं बछड़ों के साथ यमुना नदी के तट पर जंगल में खेलने जाया करते थे। कंस प्रायः कृष्ण तथा उनके मित्रों का वध करने के प्रयास के लिए किसी असुर को भेजा करता था। फिर भी सारे ग्वालबाल निश्चित होकर अपने क्रीड़ाओं का आनंद लेते रहते थे , क्योंकि वे कृष्ण द्वारा अपनी रक्षा किये जाने के प्रति इतने आश्वस्त थे। यही है आध्यात्मिक जीवन , जिसकी शुरुआत कृष्ण की शरण में जाने से होती है। 

कृष्ण की शरण जाने का अर्थ है यह प्रबल विश्वास होना कि कृष्ण हमें किसी भी घातक स्थिति से बचाएँगे। शरण में जाने के लिए पहला कदम यह है कि जो भक्ति के अनुकूल हो , हम उसे अपनाएं। तब हमें भक्ति के लिए प्रतिकूल हर वस्तु का अस्वीकार करना चाहिए। अगला कदम यह विश्वास है कि कृष्ण प्रत्येक स्थिति में हमारी रक्षा एवं पालन करेंगे। वस्तुतः वे हर एक को पहले से ही संरक्षण प्रदान कर रहे है और हर एक का पालन कर रहे है। यह एक तथ्य है। किन्तु मायावश हम सोचते है कि हम अपनी रक्षा या अपना भरणपोषण स्वयं कर रहे है। 

भक्तों की सुरक्षा तथा उनके निर्वाह का जिम्मा कृष्ण स्वयं ही लेते है। और सामान्य जीवात्माओं का जिम्मा मायादेवी अर्थात कृष्ण की बहिरंगाशक्ति लेती है। बद्ध्जीवों को दंड देने के लिए मायादेवी कृष्ण की एजेंट है। यह राज्य जैसी स्थिति है - अच्छे नागरिकों की देखभाल सीधे सरकार करती है और अपराधियों की देखरेख बंदी विभाग के माध्यम से कराती है। बंदीगृह में सरकार ध्यान रखती है कि बंदियों को पर्याप्त भोजन मिले और बीमार पड़ने पर अस्पताल में उनका उपचार हो सके। सरकार उनकी देखरेख करती है - किन्तु दंड के अधीन। 

इसी तरह इस भौतिक जगत में कृष्ण ने निश्चित रूप से हमारी देखरेख के साथ दंड की भी व्यवस्था कर रखी है। ये आप यह पाप करोगे , तो थप्पड़ लगेगा ; यदि वह पाप करोगे तो ठोकर लगेगी। यह सब तीन प्रकार के क्लेशों के अंतर्गत चल रहा है - अपने खुद के शरीर तथा मन के द्वारा होने वाले दुःख , अन्य जीवों के द्वारा दिए जाने वाले दुःख तथा देवताओं की देखरेख में दी जाने वाली प्राकृतिक आपत्तियाँ।  दुर्भाग्यवश , हम यह न समझ कर कि हम पापकर्मों के लिए दण्डित हो रहे है, माया के वशीभूत होकर यह सोचते है कि ठोकर लगना , थप्पड़ लगाया जाना तथा पीटा जाना संयोगवश है। यही माया है। 

जैसे ही आप कृष्णभावनामृत अपना लेते है , कृष्ण स्वयं ही आपकी देखरेख करने लगते है। जैसा कि उन्होंने भगवद्गीता (18.66) में इंगित किया है , "मैं तुम्हारी देखभाल करूंगा। मैं तुम्हे सारे पाप फलों से बचाऊँगा। तुम चिंता मत करो।" चूँकि इस भौतिक जगत में हम अनेक बार भौतिक शरीर पा चुके है , अतएव हम ढेरों पापफलों को भोग रहे है। किन्तु आप ज्योंही कृष्ण की शरण लेते है , वे तुरंत आपकी रखवाली करने लगते है और आपके समस्त पापफलों को निर्मूल कर देते है। कृष्ण कहते है , "मत संकोच करो।" आप यह न सोचे कि "मैंने अनेक पाप किये है। कृष्ण मुझे किस तरह बचाएंगे ?" नहीं। कृष्ण सर्वशक्तिमान है। वे आपको बचा सकते है। आपका कर्तव्य है कि आप उनकी शरण में जाएँ और बिना किसी शर्त के अपना जीवन उनकी सेवा में अर्पित कर दें। तब निःसंदेह कृष्ण आपकी रक्षा करेंगे। 

तो मैं आशा करता हूँ कि आपको भगवान कृष्ण की स्थिति को समझने में थोड़ी सहायता मिली होगी। हम मिलेंगे फिर से एक ऐसी ही आध्यात्मिक लेख के साथ। तब तक के लिए जय श्री कृष्णा। 

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