बैलगाड़ी की यात्रा
बैलगाड़ी दुनिया की सबसे पुरानी सवारी है। भारतीय गाँवों में इसका प्रयोग सबसे अधिक होता है। अब भी जहाँ - तहाँ इस्तेमाल किया जाता है। पर गाँव की तो यह मुख्य सवारी है गाँव के सभी छोटे - बड़े लोग बैलगाड़ी से एक स्थान से दूसरे स्थान को आते - जाते है।
गाँव की सबसे अच्छी और सस्ती सवारी बैलगाड़ी ही है। चाँदनी रात में बैलगाड़ी से यात्रा आनंद देने वाली होती है। नीले आकाश में चाँद हँस रहा है और तारे छिटके है। धरती पर चारों ओर शांति है। सन्नाटा छाया है इस वातावरण में बैलगाड़ी के बैल गले की घंटियाँ बजाते , सन्नाटे को चीरते आगे बढ़ रहे है। बैलगाड़ी पर कुछ लोग सो रहे है और कुछ प्रकृति के मनमोहक दृश्य का आनंद ले रहे है। शरद की चाँदनी में सारा खेत प्रकाश से भरा है। जिधर देखो , उधर चाँद की शीतल चाँदनी ! पौधे हवा में झूम रहे है। सड़क कच्ची होने के कारण जगह - जगह हिचकोले खाती बैलगाड़ी आगे बढ़ती जा रही है। सोनेवाले जाग पड़ते है और जागनेवाले एक - दूसरे से टकराकर हँस पड़ते है और हिचकोले में कभी - कभी एक - दूसरे से लिपट जाते है। इस तरह , आनंद लेते हुए बैलगाड़ी के यात्री अपने निश्चित स्थान पर पहुँचते है। बैलों की घंटियों की 'टिन - टिन' आवाज कानों को बड़ी अच्छी लगती है। गाड़ीवान यदि गायक हुआ , तो वह भी मौसमी गीत गाकर यात्री के आनंद को दुगुना कर देता है। यह ठीक है कि बैलगाड़ी की यात्रा मोटर कार की तरह आरामदेह नहीं होती , पर गाँव के वातावरण में बैलगाड़ी की यात्रा का मजा कुछ और ही है। इसलिए यह यात्रा अपने ढंग की निराली होती है।