NCERT Solution for Class 8 Hindi Ch 18 वसंत - टोपी

 NCERT Solution : पाठ - 18 'टोपी' वसंत (हिंदी) कक्षा 8 

प्रश्न - अभ्यास

कहानी से 

1. गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिला ?

उत्तर :

गवरइया और गवरा के बीच मनुष्यों द्वारा रंग - बिरंगी कपडे पहनने के विषय पर बातचीत शुरू हुई। एक ओर जहाँ गवरइया का कहना था कि कपडे पहनकर मनुष्य खूबसूरत लगता है तथा मौसम की मार से बचता है , वहीं गवरा का कहना था कि कपड़े पहनने से मनुष्य की खूबसूरती ढँक जाती है और  मौसम में आए बदलाव को सहन करने की उसकी शक्ति जाती रहती है। अंत में गवरइया की टोपी पहनने की बात गवरा मान जाता है। 

गवरइया और गवरा रोज की तरह घूरे पर चुगने गए थे , जहाँ गवरइया को रुई का फाहा मिला। उसने रुई को धुनवाने के बाद कोरी से सूत कतवाया। बुनकर से कपडे बुनवाने के बाद उससे टोपी सिलवाई। इस प्रकार गवरइया की अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर मिला। 

2. गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें। 

उत्तर :

गवरइया और गवरा की बहस संवाद के रूप में - एक शाम दिनभर दाना चुनने के उपरान्त गवरइया और गवरा आपस में इस  तरह बातें कर रहे थे -

गवरइया - आदमी को देखते हो ? कैसे रंग - बिरंगे कपड़े पहनते है। कितना फबता है उन पर कपडा। 

गवरा - कपड़ा पहनने के बाद आदमी की कुदरती खूबसूरती ढँक जाती है। अब तू ही सोच। अभी तो तेरी सुघड़ काया का एक - एक कटाव मेरे सामने है , रोंवे - रोंवे की रंगत मेरी आँखों में चमक रही है। अब तू अगर मनुष्य की तरह खुद को सरपा ढँक ले तो तेरी सारी खूबसूरती ओझल हो जाएगी कि नहीं ?"

गवरइया -  कपडे केवल अच्छा लगने के लिए नहीं , मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी। "

गवरा - (हँसकर) तू समझती नहीं। कपडे पहन - पहनकर जाड़ा , गर्मी, बरसात सहने की उनकी सकत भी जाती रही है। ......... और इस कपड़े में बड़ा लफड़ा भी है। कपड़ा पहनते ही पहनने वाले की औकात का पता चल जाता है। आदमी - आदमी की हैसियत में भेद पैदा हो जाता है। 

गवरइया - फिर भी आदमी कपडा पहनने से बाज़ नहीं आता। नित नए - नए लिबास सिलवाता रहता है। 

गवरा - यह निरा पोंगापन है। आदमी तो लिबास के फकत लाज ही नहीं ढकता , हाथ - पैर जो करने , काम करने के वास्ते है , उन्हें भी दस्ताने और मोज़े से ढँक लेता है। सिर पर लटें है , उन्हें टोपी से ढँक लेता है। अपन तो नंगे ही भले। 

गवरइया - उनके सिर पर टोपी कितनी अच्छी लगती है। मेरा भी मन टोपी पहनने को करता है। 

गवरा - "टोपी तू पाएगी कहाँ से ?" गवरा बोला , "टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। जानती है , एक टोपी के लिए कितनों का टाट उलट जाता है। जरा - सी चूक गई नहीं तो टोपी उछलते देर नहीं लगती। अपनी टोपी सलामत रहे , इसी फ़िक्र में कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। ........ मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत। 

3. टोपी बनवाने के लिए गवरइया किस - किस के पास गई ? टोपी बनने तक के एक - एक कार्य को लिखें। 

उत्तर :

टोपी बनवाने के लिए गवरइया निम्नलिखित लोगों के पास गई -

धुनिया के पास - गवरइया रुई का फाहा लेकर सबसे पहले धुनिया के पास गई। वह उस समय राजा के लिए रजाई बना रहा था।  राजा उससे यह काम मुफ्त में करा रहा था। पहले तो उसने गवरइया को उसके द्वारा लाई गई रुई धुनने से मना कर दिया , पर जब उसने आधी रुई देने की बात कही तो उसने रुई को सहर्ष धुन दिया। 

कोरी के पास - धुनिए के पास काम बन जाने से उत्साहित गवरइया कोरी के पास गई और उस रुई से सूत कातने के लिए कहा। उस समय कोरी बिना मेहनताना लिए राजा के अचकन के लिए सूत कात रहा था। सो उसने मुफ्त में काम करने से मना कर दिया। गवरइया ने उसे आधा सूत देने की बात जब कही तो उसने रुई से सूत बना दिया। 

बुनकर के पास - सूत लेकर गवरइया बुनकर के पास गई। बुनकर उस समय राजा के लिए बागा बना रहा था। यह काम वह मुफ्त में कर रहा था। उसने गवरइया का काम करने से मना कर दिया। जब गवरइया ने बुनकर को आधा कपडा देने की बात की तो वह सहर्ष तैयार हो गया। 

दरजी के पास - बुनकर से बुनवाया कपड़ा लेकर गवरइया दर्जी के पास टोपी सिलवाने गई। दर्जी राजा की सातवीं रानी से नौ लड़कियों के बाद पैदा हुए पुत्र के लिए झब्बे बना रहा था। उसे राजा से कोई मजदूरी नहीं मिलनी थी। गवरइया ने उससे दो टोपियां सिलकर जब एक लेने को कहा , तो उसने ख़ुशी - ख़ुशी टोपी सिलकर दी। उसने गवरइया की टोपी पर अपनी ओर से पाँच फुदने भी लगा दिए। इस तरह से उसे सुन्दर - सी टोपी मिल गई। 

4. गवरइया की टोपी पर दरजी ने पाँच फुदने क्यों जड़ दिए ?

उत्तर :

गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुदने इसलिए जड़ दिए क्योंकि -

  • दर्जी को उसकी सोच से अधिक मजदूरी मिल गई थी , इसलिए वह बहुत ही खुश था। 
  • राजा समर्थ था , फिर भी उसे कुछ मजदूरी नहीं दे रहा था , जबकि गवरइया उसे भरपूर मजदूरी दे रही थी। 
  • दर्जी गवरइया से खुश था , पर कुछ देने लायक न था , इसलिए अपनी ओर से पाँच फुदने जड़कर टोपी को सुन्दर बना दिया। 
कहानी से आगे 

1. किसी कारीगर से बता कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य न मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? ज्ञात कीजिए और लिखिए। 
उत्तर :
कारीगर से बातचीत करने पर पता चला कि यदि उसके परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलता है तो वह काम को मन लगाकर नहीं करता है। जब तक वह काम पूरा नहीं हो जाता , वह चिड़चिड़ा - सा रहता है। कभी - कभी तो वह उचित - अनुचित का ख्याल किए बिना भी बोल देता  है। 

2. गवरइया की इच्छा पूर्ति का क्रम घूरे पर रुई के मिल जाने से प्रारम्भ होता है। उसके बाद वह क्रमशः एक - एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य - विवरण तैयार कीजिए। 
उत्तर :
मेरी परीक्षा निकट आ रही थी। मैंने एक दूकान पर सुन्दर घडी देखी , पर वह घडी बड़ी महँगी थी। जब मैंने यह बात पापा को बताई तो वे सस्ती सी घडी दिलाना चाहते थे। मैंने जब मम्मी से वही घडी दिलाने के लिए कहा तो उन्होंने भी सस्ती - सी घडी दिलानी चाही। मेरी गुल्लक में भी उतने पैसे नहीं थे। मैंने अपनी गुल्लक तोड़ दी। कुछ रुपए मम्मी से माँगे। कुछ रूपए पापा से माँग लिए।  अब मुझे मात्र पचास रूपए की ही आवश्यकता थी। मैंने अपने मित्र से पचास रुपए उधार ले लिए और दूकान पर गया। दुकानदार ने मेरे अनुरोध पर पचास रूपए कम कर दिए। इस तरह मुझे मेरी पसंद की घडी मिली और मैं बहुत ही खुश हुआ। 

3. गवरइया के स्वाभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की  सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है , तर्क सहित लिखिए। 
उत्तर :
कार्य की सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि उत्साह के अभाव में कोई व्यक्ति या प्राणी काम करने में रूचि नहीं लेगा। उसके लिए वह काम नीरस प्रतीत होगा। वह काम पूरा नहीं कर सकेगा। 

अनुमान और कल्पना 

1. टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुंची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने पहुँची। कारण का अनुमान लगाइए। 
उत्तर :
गवरइया की राजा से कोई बहस नहीं हुई थी। इसके बाद भी वह राजा को चुनौती देने पहुँची , उसका कारण यह रहा होगा कि वह राजा को यह बताना चाहती होगी कि राजा तू सारे राज्य का अन्नदाता है। तू समर्थ होकर गरीब मजदूरों को उनका मेहनताना नहीं देता है।  एक मुझे देख , मेरे पास कुछ भी नहीं है , फिर भी जो था , उसी में से आधा - आधा देकर मैंने अपना काम करवा लिया है। कारीगरों से मैंने बेगार में काम नहीं करवाया है। हे राजा ! तू अपने सामर्थ्य का दुरूपयोग करके काम करवाना चाहता है। देख ! तुम्हारे काम से पहले मेरा काम हो गया। 

2. यदि राजा के राज्य सभी कारीगर अपने - अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता ?
उत्तर :
राजा द्वारा उचित पारिश्रमिक पाने पर कारीगरों का व्यव्हार गवरइया के साथ अच्छा न होता। वे पहले राजा का काम करते और अच्छे तरीके से करते। वे गवरइया के काम की उपेक्षा कर पहले राजा के काम को प्राथमिकता देते। 

3. चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा बागा बन रहा था। चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं संतान के लिए झब्बे सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम क्यों किया ?
उत्तर :
धुनिया , कोरी , बुनकर और दर्जी ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम पहले इसलिए किया क्योंकि राजा उनको बिना पारिश्रमिक दिए काम करवा रहा था। उन सभी का मन काम में नहीं लग रहा था। गवरइया उनको उनकी मेहनत से भी ज्यादा मेहनताना दे रही थी। उचित पारिश्रमिक पाकर भला काम नहीं करेगा। 

भाषा की बात 

1. गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उनकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे गवरइया गौरैया का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। फुँदना , फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द है जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गए है , जैसे - मुलुक - मुल्क , खमा - क्षमा , मजूरी - मजदूरी , मल्लार - मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होनेवाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए , जैसे - टेम - टाइम , टेसन /टिसन - स्टेशन। 
उत्तर :
ग्रामीण भाषा में लिखे गए कुछ शब्द और उनका मूल रूप निम्नलिखित है -
  • गवरइया - गोरैया 
  • मानुष - मनुष्य 
  • सकत - शक्ति 
  • चाम - चर्म 
  • मल्लार - मल्हार 
  • मुलुक - मुल्क 
  • बरधा - बैल 
  • हलस - उल्लास 
  • इत्तै - इतने 
  • अपन - अपना 
  • बावरा - बावला 
  • भइया - भैया 
  • खमा - क्षमा 
  • जुरती - जुड़ती 
  • इस्कूल - स्कूल 
  • सकूटर - स्कूटर 
  • भिनसार - भोर 
  • दुपहर - दोपहर 
2. मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते है। इनका अक्षरशः अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए है। टोपी को लेकर तीन मुहावरे है ; जैसे कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए। 
उत्तर :

मुहावरा अर्थ वाक्य प्रयोग
टोपी उछलना बेइज्जती होना दहेज़ की माँग के कारण जब दूल्हे के पिता को पुलिस ने पकड़ लिया तो उनकी टोपी उछलते देर न लगी।
टोपी पहनाना खुशामद करना अपनी टोपी बचाए रखने के लिए चुनाव के दिनों में नेता गरीब जनता को टोपी पहनाने लगते है।
टोपी सलामत रहना इज्जत बची रहना जब तक शादियों में अंधाधुंध खर्चा रोका नहीं जाता तब तक गरीब पिता की टोपी सलामत रहना मुश्किल है।

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