राष्ट्रीय आय का लेखांकन : अध्याय 2 समष्टि अर्थशास्त्र कक्षा 12

 NCERT Solution for Class 12 Macroeconomics Ch 2

अभ्यास , पृष्ठ संख्या - 36 

1. उत्पादन के चार कारक कौन - कौन से है और इनमे से प्रत्येक के पारिश्रमिक को क्या कहते है ?

उत्तर :

उत्पादन के चार कारक तथा इनके पारिश्रमिक निम्नलिखित है :

  • श्रम - किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक कार्य जो धन उपार्जन के लिए किया जाता है श्रम कहलाता है।
  • भूमि – अर्थशास्त्र में उत्पादन में प्रयोग होने वाले सभी प्राकृतिक साधनों को भूमि में शामिल किया जाता है।
  • पूँजी - उत्पादन में प्रयोग होने वाले मनुष्य उत्पादित साधनों को पूँजी में शामिल किया जाता है।
  • उद्यमी - उद्यमी ऐसे लोग हैं जो बड़े निर्णयों के नियंत्रण का कार्य करते हैं और उद्यम के साथ जुड़े बड़े जोखिम का वहन करते हैं। श्रम के पारिश्रमिक को वेतन कहते हैं। भूमि के पारिश्रमिक को किराया लगान कहते हैं। पूँजी के पारिश्रमिक को ब्याज कहते हैं। उद्यमी के पारिश्रमिक को लाभ कहते हैं।
2. किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर क्यों होता है ? व्याख्या कीजिए। 

उत्तर :

यदि अर्थव्यवस्था में कोई बाह्य स्त्राव नहीं होता है अथवा मुद्रा खर्च करने का कोई और विकल्प नहीं होता है तो परिवार क्षेत्र के पास आय को खर्च करने का एक ही विकल्प होता है कि सम्पूर्ण आय को अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च किया जाए। दूसरे शब्दों में उत्पादन साधनों को साधन आय के रूप में आय प्राप्त होती है। वे इसका प्रयोग वस्तुओं एवं सेवाओं को क्रय करने के लिए करते है। इस प्रकार उत्पादक इकाइयों द्वारा साधन भुगतान के रूप में प्रदान की गई मुद्रा वस्तुओं व सेवाओं के विक्रय से प्राप्त आगम के रूप में वापस मिल जाती है। 

इस प्रकार फर्मों द्वारा किए गए साधन भुगतानों के योग तथा सामूहिक उपभोग पर किए गए व्यय में कोई अंतर नहीं होता है। दूसरे चक्र में उत्पादक पुनः वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करेंगे और साधनों को उनकी सेवाओं के लिए साधन भुगतान करेंगे। साधनों के स्वामी साधनों से प्राप्त आय को वस्तुओं और सेवाओं की खरीद पर खर्च करेंगे। इस प्रकार वर्ष दर वर्ष आय को वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर खर्च किया जाता है। अतः परिवार क्षेत्र द्वारा किया गया सामूहिक व्यय फर्मों को प्राप्त हो जाता है। 

3. स्टॉक और परवाह में भेद स्पष्ट कीजिए। निवल निवेश और पूँजी में कौन स्टॉक है और कौन प्रवाह ? हौज में पानी के प्रवाह से निवल निवेश और पूँजी की तुलना कीजिए। 

उत्तर :

स्टॉक और प्रवाह दोनों चर मात्रा के अंतर का आधार समय है। एक को समय बिंदु के सन्दर्भ में मापा जाता है तो दूसरे को समयावधि के सन्दर्भ में मापा जाता है। 

प्रवाह चर - प्रवाह एक ऐसी मात्रा है जिसे समय अवधि के सन्दर्भ में मापा जाता है। जैसे - घंटे , दिन , सप्ताह , मास , वर्ष आदि। उदाहरण के लिए , राष्ट्रीय आय एक प्रवाह है जो किसी देश में , एक वर्ष में उत्पादित अंतिम पदार्थ व सेवाओं के शुद्ध प्रवाह के मौद्रिक मूल्य को मापता है। अन्य शब्दों में , राष्ट्रीय आय , अर्थव्यवस्था की एक वर्ष की समयावधि में होने वाली प्राप्तियों को दर्शाता है। प्रवाह चरों के साथ जब तक समयावधि न लगी हो इनका कोई अर्थ नहीं निकलता। मान लो श्रीमान X की आय ₹2000 है तो आप उनके वित्तीय स्तर के विषय में क्या कहेंगे ? कुछ भी नहीं सकते। यदि उनकी आय ₹2000 प्रति वर्ष है तो वे बहुत निर्धन है यदि यह ₹2000 प्रति माह है तो वह गरीबी रेखा से थोड़ा ऊपर है , यदि वह ₹2000 प्रति सप्ताह है तो वह मध्यम वर्ग में है , यदि वह ₹2000 प्रतिदिन है तो वह अमीर है और यदि वह ₹2000 प्रति घंटा है तो वह बहुत अमीर है। अतः प्रवाह चरों का अर्थ समयावधि के बिना नहीं निकाला जा सकता। 

स्टॉक - स्टॉक एक ऐसी मात्रा है जो किसी निश्चित समय बिंदु पर मापी जाती है। इसकी व्याख्या समय के किसी बिंदु जैसे - 4 बजे , सोमवार , 1 जनवरी 2011 आदि के आधार पर की जाती है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय पूँजी एक स्टॉक है जो देश के अधिकार में किसी निश्चित तिथि को मशीनों , इमारतों , औजारों , कच्चामाल आदि के स्टॉक के रूप में करती है। स्टॉक का सम्बन्ध एक निश्चित तिथि से होता है। मान लीजिए श्रीमान X का बैंक शेष ₹2000 है तो इसके साथ यह बताना जरुरी है कि कब किस समय बिंदु पर। उचित अर्थ के लिए कहना चाहिए कि 1 जुलाई 2014 को श्रीमान X का बैंक शेष ₹2000 है। निवल निवेश एक प्रवाह है और पूँजी स्टॉक है क्योंकि निवल निवेश का संबंध एक समय काल से है , जबकि पूँजी एक निश्चित समय पर एक व्यक्ति की संपत्ति का भंडार बनाती है। पूँजी एक हौज के समान है जबकि निवल निवेश उस हौज में पानी के प्रवाह के समान है। हौज में पानी का स्तर एक निश्चित समय बिंदु पर मापा जाता है। अतः , यह एक स्टॉक है, जबकि बहते हुए पानी का सम्बन्ध पानी काल से है। 

4. नियोजित और अनियोजित माल - सूची संचय में क्या अंतर है ? किसी फर्म की माल सूची और मुलयवर्धित के बीच सम्बन्ध बताइए। 

उत्तर :

नियोजित और अनियोजित माल - सूची में अंतर इस प्रकार है -

आधारनियोजित माल सूची संचयअनियोजित माल सूची संचय
अर्थवह माल सूची संचय जिसके लिए पहले से योजना बनाई गई है , नियोजित माल सूची संचय कहलाती है।बिक्री में अप्रत्याशित गिरावट की स्थिति में फर्म के पास वस्तुओं का अविक्रीत स्टॉक होगा , जिसके बारे में वह आशा नहीं कर सकता था। अतः इसे अनियोजित माल सूची संचय की संज्ञा दी जाती है।
चिन्हयह सदा धनात्मक होता है।यह धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी। यदि अंतिम स्टॉक प्रारंभिक स्टॉक से अधिक है तो यह धनात्मक होगा और यदि अंतिम स्टॉक से कम है तो यह ऋणात्मक होगा।

मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग उत्पादन का मूल्य = बिक्री + माल-सूची संचय अतः मूल्यवर्धित = बिक्री + माल-सूची संचय – मध्यवर्ती उपभोग

5. तीनों विधियों से किसी देश के सकल घरेलु उत्पाद की गणना करने की किन्ही तीन निष्पत्तियाँ लिखिए। संक्षेप में यह भी बताइए कि प्रत्येक विधि से सकल घरेलु उत्पाद का एक - सा मूल्य क्या आना चाहिए ?

उत्तर :

Rashtriy Aay Ka Lekhankan Class 12 - Samashti Arthshastr NCERT Solution


NCERT Solution for Class 12 Samashti Arthshastr Ch 2 - Rashtriy Aay Ka Lekhan

प्रत्येक विधि से सकल घरेलु उत्पाद का मूल्य एक सा आना चाहिए , क्योंकि अर्थव्यवस्था में जितना उत्पादन होगा , उतनी ही कारक आय सृजित होगी और जितनी साधन आय सृजित होगी उतनी ही अंतिम व्यय होगा। 

NCERT Solution for Class 12 Ch 2 Samashti Arthshastr - Rashtriy Aay Ka Lekhankan

6. बजटीय घाटा और व्यापार घाटा को परिभाषित कीजिए। किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रूपए था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रुo था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रुο थी। उस देश के बजटीय घाटे का परिणाम क्या था ?

उत्तर :

सकल घरेलु उत्पाद - C + S + T

सकल घरेलु व्यय - C + [ G + X - M]

अतः C + I + G + X - M = C + S + T

G - T से उस मात्रा की माप होती है , जिस मात्रा में सरकारी व्यय में सरकार द्वारा अर्जित कर राजस्व से अधिक वृद्धि होती है। इसे 'बजटीय घाटा' के रूप में सूचित किया जाता है। M - X के अंतर को व्यापार घाटा के रूप में संचित किया जाता है। 

बजट घाटा देश के लिए एक सीमा के भीतर वांछनीय हो सकता है परन्तु व्यापार घाटा सदा अवांछनीय है। 

(1-S) + (G-T) = M-X

हम जानते है (1-S) + (G-T)

2000 + 1500 = 3500

अतः व्यापार घाटा = +3000 

7. मान लीजिए कि किसी विशेष वर्ष में किसी देश का सकल घरेलु उत्पाद बाज़ार कीमत पर 1100 करोड़ रूо था। विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 100 करोड़ रुपए था। अप्रत्यक्ष कर मूल्य - उत्पादन का मूल्य 150 करोड़ रूपए और राष्ट्रीय आय राष्ट्रीय आय 850 करोड़ रूपए है , तो मूल्यह्रास के समस्त मूल्य की गणना कीजिए। 

उत्तर :

हम जानते है ,

राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलु उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल कर्क आय - शुद्ध अप्रत्यक्ष कर - मूल्यह्रास

∴ 850 = 1100 + 100 - 150 - मूल्यह्रास 

मूल्यह्रास = 1100 + 100 - 150 - 850 

= 1200 - 1000 = 200 करोड़ रूо

8. किसी देश विशेष में एक वर्ष में कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 1900 करोड़ रूपए है। फर्मों / सरकार के द्वारा परिवार को अथवा परिवार के द्वारा सरकार / फर्मों को किसी भी प्रकार का ब्याज अदायगी नहीं की जाती है , परिवारों के वैयक्तिक प्रयोज्य आय 1200 करोड़ रुपए है। उनके द्वारा अदा किया गया वैयक्तिक आयकर 600 करोड़ रूपए है और फर्में तथा सरकार द्वारा अर्जित आय का मूल्य 200 करोड़ रूपए है। सरकार और फर्म द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी का मूल्य क्या है ?

उत्तर :

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9. निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए :

(करोड़ रू में)
(a)कारक लागत पर निवल घरेलु उत्पाद8000
(b)विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय200
(c)अवितरित लाभ1000
(d)निगम कर500
(e)परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज1500
(f)परिवारों द्वारा भुगतान किया गया ब्याज1200
(g)अंतरण आय300
(h)वैयक्तिक कर500

उत्तर :

वैयक्तिक आय = (a) + (b) - (c) - (d) + (e) - (f) + (g)

= 8000 + 200 - 1000 - 500 + 1500 - 1200 + 300

= 10000 - 2700

= ₹6300

करोड़ वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय - वैयक्तिक आय = 6300 - 500 = ₹5800 करोड़ 

10. हजाम राजू एक दिन में बाल काटने के लिए 500 रू का संग्रह करता है। इस दिन उसके उपकरण में 50 रू का मूल्यह्रास होता है। इस 450 रू में से राजू 30 रू बिक्री कर अदा करता है। 200 रू घर ले जाता है और 220 रू उन्नति और नए उपकरणों का क्रय करने के लिए रखता है। वह अपनी आय में से 20 रू आय कर के रूप में अदा करता है। इन पूरी सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित में राजू का योगदान ज्ञात कीजिए (a) सकल घरेलु उत्पाद (b) बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (d) वैयक्तिक उत्पाद (e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय। 

उत्तर :

(a) सकल घरेलू उत्पाद बाजार कीमत पर = कुल प्राप्ति = 500 

      सकल घरेलू उत्पाद कारक आय पर = सकल उत्पाद बाजार कीमत पर – अप्रत्यक्ष कर = 500 – 30 = ₹ 470

 (b) बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल घरेलू उत्पाद बाजार कीमत पर – मूल्यह्रास = 500 – 50 = ₹ 450

(c) कारक लागत पर निम्न राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर = 450 – 30 = ₹ 420

(d) वैयक्तिक आय = कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ = 420 – 220 = ₹ 200

(e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर = 200 – 20 = ₹ 180

11. किसी वर्ष एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य 2500 करोड़ रू था। उसी वर्ष , उस देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत पर 300 करोड़ रू था। प्रतिशत के रूप में वर्ष के सकल घरेलु उत्पाद अवस्फीतिक के मूल्य की गणना कीजिए। क्या आधार वर्ष और उल्लेखनीय वर्ष के बीच कीमत स्तर में वृद्धि हुई ?

उत्तर :

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12. किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलु उत्पाद की कुछ सीमाओं को लिखो। 

उत्तर :

किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाएँ निम्नलिखित हैं - 

1. सकल घरेलू उत्पाद का वितरण-यह संभव है कि किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद भी बढ़ रहा हो और उसके साथ-साथ आय की असमानताएँ भी बढ़ रही हो। ऐसी स्थिति में अमीर और अधिक अमीर हो । जायेंगे, परन्तु निर्धन और अधिक निर्धन हो जायेंगे, अतः निर्धनों का कल्याण नहीं होगा। उदाहरण के लिए एक देश की आय सन् 2000 में 14000 करोड़ से बढ़कर 320000 करोड़ हो गई। 14000 करोड़ में से 400 करोड़ 50% निर्धनतम को मिल रहे थे जबकि 20000 करोड़ में से ₹ 2000 करोड़ निर्धनतम वर्ग को मिल रहे थे और 180000 करोड़ अमीरतम वर्ग को तो निर्धनतम को आर्थिक कल्याण स्तर कम हुआ है। 

2. गैर मौद्रिक विनिमय – अर्थव्यवस्था के अनेक कार्यकलापों का मूल्यांकन मौद्रिक रूप में नहीं होता। उदाहरण के लिए जो महिलायें अपने घरों में घरेलू सेवाओं का निष्पादन करती हैं, उसके लिए उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता। बहुत सी सेवाओं को एक दूसरे के बदले में प्रत्यक्ष रूप से विनिमय होता है, क्योंकि मुद्रा का यहाँ प्रयोग नहीं होता है, इसीलिए वस्तु विनिमय को आर्थिक कार्यकलाप का हिस्सा नहीं माना जाता। इससे सकल घरेलू उत्पाद का अल्पमूल्यांकन होता है, अतः सकल घरेलू उत्पाद का मूल्यांकन मानक तरीके से करने पर यह देश के कल्याण की सही तस्वीर प्रस्तुत नहीं करता। 

3. बाह्य कारण – बाह्य कारणों से तात्पर्य किसी देश या व्यक्ति के लाभ या हानि से है, जिससे दूसरा पक्ष प्रभावित होता है जिसे भुगतान नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए जब एक फैक्टरी प्रदूषण करती है। तो इससे समाज को हानि होती है, परन्तु समाज को इस हानि के प्रतिफल में क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती। जल प्रदूषण मछुआरों को हानि पहुँचाता है परन्तु इस हानि की क्षतिपूर्ति नहीं होती। इससे सकल घरेलू उत्पाद, अर्थव्यवस्था के कल्याण का सही मूल्यांकन करने में असमर्थ हो जाता है। इसी प्रकार एक व्यक्ति आम का बाग लगाता है तो इससे शुद्ध वायु का लाभ उस स्थान के पूरे समाज को मिलता है, परन्तु । इस लाभ के लिए कोई आम के बाग के मालिक को भुगतान नहीं करता। अतः ऋणात्मक बाह्यताएँ तथा धनात्मक बाह्यताएँ सकल घरेलू उत्पाद को अर्थव्यवस्था के कल्याण का सूचक नहीं रहने देती।

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