वन के मार्ग में वसंत कक्षा 6 हिंदी पाठ 16

 काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या तथा अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

पृष्ठ 115 

1. पुर तें निकसी ....................... जल च्वै। 

शब्दार्थ :

  1. पुर - नगर। 
  2. निकसी - निकली। 
  3. रघुबीर बधू - सीताजी। 
  4. धरि - धारण करके। 
  5. धीर - धैर्य। 
  6. मग - रास्ता। 
  7. डग - कदम। 
  8. झलकी - दिखाई दी। 
  9. भाल - मस्तक, ललाट। 
  10. कनी - बूँदें। 
  11. पुट - होंठ। 
  12. बूझति - पूछती है। 
  13. केतिक - कितना। 
  14. पर्नकुटी - पत्तों की बनी कुटिया। 
  15. कित - कहाँ। 
  16. तिय - पत्नी। 
  17. आतुरता - व्याकुलता। 
  18. चारु - सुन्दर। 
  19. च्वै - गिरना। 

प्रसंग - प्रस्तुत सवैया 'तुलसीदास' द्वारा रचित 'कवितावली' के 'बालकांड' के 'वन के मार्ग में' नामक पाठ से लिया गया है। इन पंक्तियों में राम , लक्ष्मण और सीता को वनवास जाते समय मार्ग में होने वाली परेशानियों का हृदयस्पर्शी वर्णन है। 

व्याख्या - कवि कहता है कि महलों में रहने वाली सुकुमारी सीता जी नगर से निकल कर धैर्य धारण कर रास्ते में दो कदम ही चली थीं कि उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आई और उनके दोनों मधुर होंठ सुख गए। फिर वे श्री राम से पूछती हैं कि हे प्रिय , अभी और कितनी दूर चलना है तथा आराम करने के लिए पत्तों की कुटिया कहाँ बनाएँगे ? पत्नी सीता जी की यह व्याकुलता देखकर श्रीराम की सुन्दर आँखों से आँसू बहने लगे। 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. प्रस्तुत सवैया किस कवि द्वारा लिखा गया है ?

उत्तर :

तुलसीदास। 

प्रश्न 2. सवैये में कवि क्या वर्णन कर रहा है ?

उत्तर :

प्रस्तुत सवैया में कवि राम , लक्ष्मण व सीता को वनवास में जाते समय मार्ग में होने वाली परेशानियों का वर्णन कर रहा है। 

प्रश्न 3. वन में जाती सीता जी का वर्णन कवि ने किस प्रकार किया है ?

उत्तर :

सीता जी नगर से निकलकर धैर्य धारण कर अभी दो कदम ही चली थीं कि उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आई और उनके दोनों मधुर होंठ सुख गए। 

प्रश्न 4. सीता राम से क्या पूछती है ?

उत्तर :

सीता जी राम से पूछती हैं कि हे प्रिय , अभी और कितनी दूर चलना है तथा आराम करने के लिए पत्तों की कुटियाँ कहाँ बनाएँगे। 

2. जल को गए .................. बिलोचन बाढ़े। 

शब्दार्थ :

  1. लक्खनु - लक्ष्मण। 
  2. लरिका - लड़का। 
  3. परिखौ - प्रतीक्षा करना , इन्तजार करना। 
  4. छाँह - छाया। 
  5. घरीक - एक घड़ी समय। 
  6. ठाढ़े - खड़ा होना। 
  7. पसेउ - पसीना। 
  8. बयारि - हवा। 
  9. पखारिहौं - धोना। 
  10. भूभुरि - गर्म रेत। 
  11. श्रम - मेहनत , थकावट। 
  12. विलंब - देर। 
  13. कंटक - काँटा। 
  14. काढ़ना - निकालना। 
  15. नेहु - प्रेम। 
  16. लख्यो - देखकर। 
  17. तनु - शरीर। 
  18. वारि - पानी , आँसू। 
  19. विलोचन - आँखें। 

प्रसंग - प्रस्तुत सवैया 'तुलसीदास' द्वारा रचित 'कवितावली' के 'बालकांड' के 'वन के मार्ग में' नामक पाठ से लिया गया है। इन पंक्तियों में राम , लक्ष्मण और सीता को वनवास जाते समय मार्ग में होने वाली परेशानियों का हृदयस्पर्शी वर्णन है। 

व्याख्या - सीता जी , श्रीराम से कहती है , कि लक्ष्मण बालक हैं। वे जल लेने गए है , कहीं छाया में एक घड़ी खड़े होकर उनका इंतज़ार कर लीजिए। मैं आपका पसीना पोंछकर हवा करुँगी और गर्म बालू से जल चुके पैरों को धोऊँगी। तुलसीदास कहते हैं कि सीता जी की थकावट को देखकर श्रीराम बड़ी देर तक पैरों से काँटे निकालने का अभिनय करते रहे। जब सीता जी ने राम का यह प्रेम देखा तो उनका शरीर रोमांचित हो गया और आँखों में आँसू भर आए। 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. उपयुर्क्त सवैया किस कवि द्वारा लिखा गया है ?

उत्तर :

तुलसीदास। 

प्रश्न 2. सीता जी लक्ष्मण के लिए राम से क्या कहती है ?

उत्तर :

सीताजी लक्ष्मण के लिए राम से कहती है कि वे अभी बालक हैं और जल  लेने गए है। इसलिए कहीं छाया में एक घड़ी खड़े होकर उनका इंतजार कर लीजिए। 

प्रश्न 3. सीता जी रामजी की सेवा किस प्रकार  करना चाहती है ?

उत्तर :

सीता जी राम जी से कहती है कि मैं आपका पसीना पोंछकर हवा करुँगी और गर्म बालू से जल चुके पैरों को धोऊँगी। 

प्रश्न 4. जानकी नाह को नेह लख्यौ , पुलको तनु , बारि विलोचन बाढ़े।' पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर :

'जानकी नाह को नेह लख्यौ , पुलको तनु , बारि विलोचन बाढ़े' का अर्थ है - जब सीता जी ने राम का यह प्रेम (सीता के पाँव से काँटे निकालने का) देखा तो उनका शरीर रोमांचित हो गया और आँखों में आँसू भर आए। 

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