काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या तथा अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
1. मैं सबसे ........... तेरा हाथ !
शब्दार्थ :
- अंचल - आँचल , साड़ी का वह भाग जो कमर के ऊपर होता है।
- सदा - हमेशा।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश पाठ्यपुस्तक वसंत भाग - 1 में संकलित "मैं सबसे छोटी होऊं" कविता से लिया गया है। इसके रचियता श्री सुमित्रानंदन पंत है।
कवि ने इन पंक्तियों में कहा है कि बच्ची छोटी रहकर हमेशा माँ का साथ चाहती है।
व्याख्या - एक छोटी सी बच्ची अपनी माँ से कहती है कि हे माँ , मैं कभी बड़ी न होऊं। हमेशा सबसे छोटी रहूँ , जिससे मैं तुम्हारी गोद में सोया करूँ। माँ , मैं तुम्हारा आँचल पकड़कर सदैव तुम्हारे साथ घूमती रहूँ और तुम्हारा हाथ कभी न छोड़ूँ। अर्थात बच्ची अपनी माँ का साथ हमेशा चाहती है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर :
कवि का नाम - सुमित्रानंदन पंत , कविता का नाम - मैं सबसे छोटी होऊं।
प्रश्न 2. छोटी बच्ची माँ से क्या कहती है ?
उत्तर :
छोटी बच्ची अपनी माँ से कहती है कि माँ , मैं कभी बड़ी न होऊं। हमेशा छोटी रहूँ जिससे मैं तुम्हारी गोद में सोया करूँ।
प्रश्न 3. बच्ची हमेशा कहाँ रहना चाहती है ?
उत्तर :
बच्ची हमेशा अपनी माँ के साथ रहना चाहती है।
2. बड़ा बनाकर ................ की बात !
शब्दार्थ :
- छलना - कपट करना।
- मात - माता।
- सदा - हमेशा।
- कर - हाथ।
- सज्जित - सजाकर , सुंदर बनाकर।
- गात - शरीर।
- सुखद - सुख देने वाली।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश पाठ्यपुस्तक वसंत भाग - 1 में संकलित "मैं सबसे छोटी होऊं" कविता से लिया गया है। इसके रचियता श्री सुमित्रानंदन पंत है।
कवि ने इन पंक्तियों में बताया है कि बच्चे के बड़े हो जाने पर माँ के बर्ताव में कुछ परिवर्तन आ जाता है।
व्याख्या - छोटी लड़की अपनी माँ से कहती है कि हे माँ , पहले तो तुम हमें बड़ा बना देती हो फिर तुम हमारे साथ छल करने लगती हो। बड़ा होने पर तुम दिन - रात हमारे साथ नहीं रहती हो। माँ , तुम अपने हाथों से हमें खिला - पिलाकर, मुँह धुलाकर , धूल झाड़ - पोंछकर , हमारे शरीर को सुन्दर बनाकर हाथ में खिलौने थमा देती हो। तुम हमें खिलौनों से बहलाकर परियों वाली कहानी नहीं सुनाती हो।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर :
कवि का नाम - सुमित्रानंदन पंत , कविता का नाम - मैं सबसे छोटी होऊं।
उत्तर :
बच्ची कहती है कि माँ , पहले तो तुम हमें बड़ा बना देती हो और फिर तुम हमारे साथ छल करने लगती हो। अर्थात बड़ा होने पर तुम दिन - रात हमारे साथ नहीं रहती हो।
प्रश्न 3. माँ बच्ची को किस प्रकार खिलाती है ?
उत्तर :
माँ बच्ची को अपने हाथ से खिलाती है।
प्रश्न 4. बच्ची माँ से क्या शिकायत करती है ?
उत्तर :
बच्ची माँ से शिकायत करती है कि तुम हमें खिलौनों से बहलाकर परियों वाली कहानी नहीं सुनाती हो।
3. ऐसी बड़ी ........... चंद्रोदय !
शब्दार्थ :
- स्नेह - प्यार।
- निस्पृह - बिना इच्छा के।
- निर्भय - निडर।
- चंद्रोदय - चाँद का निकलना।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश पाठ्यपुस्तक वसंत भाग - 1 में संकलित "मैं सबसे छोटी होऊं" कविता से लिया गया है। इसके रचियता श्री सुमित्रानंदन पंत है।
कवि ने इन पंक्तियों में कहा है कि बच्चा इस प्रकार बड़ा नहीं होना चाहता है कि उसे माँ का स्नेह खोना पड़े।
व्याख्या - छोटी बच्ची अपनी माँ से कहती है कि मैं ऐसी बड़ी नहीं होना चाहती हूँ कि जिससे मैं तुम्हारे प्यार से वंचित रह जाऊँ। मुझे तो तुम्हारा प्यार हमेशा ही चाहिए। हे माँ , मैं छोटी रहकर तुम्हारे आँचल में बिना कुछ चाहे छिपी रहना चाहती हूँ और तुमसे बिना डर के कह सकूँ कि हे माँ , मुझे निकलता हुआ चाँद दिखा दो।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर :
कवि का नाम - सुमित्रानंदन पंत , कविता का नाम - मैं सबसे छोटी होऊं।
प्रश्न 2. बच्ची बड़ी क्यों नहीं होना चाहती है ?
उत्तर :
बच्ची बड़ी होकर अपनी माँ के प्यार से वंचित नहीं होना चाहती। इसलिए वह बड़ी नहीं होना चाहती।
प्रश्न 3. बच्ची कहाँ छिपी रहना चाहती है ?
उत्तर :
बच्ची अपनी माँ के आँचल में छिपी रहना चाहती है।
प्रश्न 4. 'कहूँ दिखा दे चंद्रोदय !' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
बच्ची अपनी माँ से कहती है कि हे माँ, मुझे निकलता हुआ चाँद दिखा दो।