मनोवैज्ञानिक गुणों में विभिन्नताएँ : अध्याय 1 कक्षा 12 मनोविज्ञान

 NCERT Solution for Psychology Ch 1 Hindi Medium Class 12

समीक्षात्मक प्रश्न , पृष्ठ संख्या  - 23 

1. किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि का लक्षण वर्णन और उसे परिभाषित करते है ?

उत्तर :

मनुष्यों में पारस्परिक भिन्नता जानने में बुद्धि एक अहम भूमिका निभाती है। सामान्य आदमी बुद्धि के स्वरूप के बारे में जो समझते हैं मनोवैज्ञानिक उसे बिल्कुल अलग तरीके से समझा जाता है। बुद्धि को परिभाषित करते हुए मनोवैज्ञानिक बताते हैं की "बुद्धि का आशय पर्यावरण को समझने, चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता से है। अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) बुद्धि के विषय पर शोध कार्य करने वाले सबसे पहले मनोवैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने बुद्धि को अच्छा निर्णय लेने की योग्यता, अच्छा बोध करने की योग्यता और अच्छा तर्क प्रस्तुत करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया। वेशलर (wechler), जिनका बनाया गया बुद्धि परीक्षण बहुत व्यापक रूप से उपयोग जाता है, बुद्धि को उसकी प्रकार्यात्मकता के रूप में समझा अर्थात उन्होंने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होने में बुद्धि के मूल्य को महत्व प्रदान किया। जबकि कुछ मनोवैज्ञानिक जैसे गार्डनर और स्टर्नबर्ग का सुझाव है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति न केवल अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है बल्कि उसमें सक्रियता से परिवर्तन और परिमार्जन भी करता है। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति संज्ञानात्मक सक्षमता तथा विद्यालयीय शिक्षा से लाभ उठाने की योग्यता का ज्ञान होता है। सामान्यता कम बुद्धि रखने वाले विद्यार्थी विद्यालय की परीक्षाओं में उतना अच्छा प्रदर्शन करने की संभावना नहीं रखते परंतु जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनकी सफलता की प्राप्ति का संबंध मात्र बुद्धि परीक्षणों पर उनके प्राप्तांकों से नहीं होता। यदि आप किसी बुद्धिमान व्यक्ति के व्यवहारों का परीक्षण करें तो आप पाएंगे कि उनमें मानसिक सतर्कता, हाजिरजवाबी, शीघ्र सीख लेने की योग्यता और संबंधों को समझ लेने की योग्यता जैसे अनेक गुण होते हैं।

2. किस सीमा तक हमारी बुद्धि आनुवंशिकता (प्रकृति) और पर्यावरण (पोषण) का परिणाम है ? विवेचना कीजिए। 

उत्तर :

कुछ लोग दूसरों की तुलना में अधिक बुद्धिमान होते हैं ऐसा उनकी अनुवांशिकता के कारण होता है या फिर पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव के कारण। बुद्धि पर अनुवांशिकता के प्रभाव के प्रमाण मुख्य रूप से जुड़वा बच्चों के अध्ययन में दिखता है। साथ-साथ पाले गए जुड़वा बच्चों की बुद्धि में 0.90 सहसंबंध पाया गया है। बाल्यावस्था में अलग अलग करके जुड़वा बच्चों की बौद्धिक, व्यक्तित्व तथा व्यवहारपरक विशेषताओं में पर्याप्त समानता दिखाई देती है। अलग-अलग पर्यावरण में पाले गए समरूप जुड़वा बच्चों की बुद्धि में 0.72 सहसंबंध है, साथ-साथ पाले गए भ्रातृ जुड़वा बच्चों की बुद्धि में 0.60 सहसंबंध, साथ साथ गए बहनों की बुद्धि में 0.50 सहसंबंध तथा अलग-अलग पाले गए सहोदर की बुद्धि में 0.25 सहसंबंध पाया गया है। इस संबंध में अन्य प्रमाण दत्तक बच्चों के उन अध्ययनों से प्राप्त हुए हैं जिनमें यह पाया गया है कि बच्चों की बुद्धि गोद लेने वाले माता-पिता जन्म देने वाले माता-पिता के अधिक समान होती है। बुद्धि पर पर्यावरण के प्रभाव के संबंध मे किए गए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि जैसे-जैसे बच्चों की आयु बढती जाती है उनका बौद्धिक स्तर गोद लेने वाले का माता पिता की बुद्धि के निकट पहुंच जाता है। सुविधावंचित परिस्थितियों वाले घरों के जिन बच्चों को सामाजिक-आर्थिक स्थिति के परिवारों द्वारा गोद ले लिया जाता है की बुद्धि प्राप्तांकों में अधिक वृद्धि दिखाई देती है। यह इस बात का प्रमाण है कि पर्यावरण वंचन बुद्धि के विकास को घटा देता है जबकि प्रचुर एवं समृद्धि पोषण, अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा गुणवक्तायुक्त शिक्षा-दीक्षा बुद्धि में वृद्धि कर देती है। सामान्यतया सभी मनोवैज्ञानिकों की इस तथ्य पर सहमति है कि बुद्धि आनुवंशिकता (प्रकृति) तथा पर्यावरण (पोषण) की जटिल अंतःक्रिया का परिणाम होती है। अनुवांशिकता द्वारा किसी व्यक्ति की बुद्धि की परिसीमाएँ तय हो जाती है और बुद्धि का विकास उस परिसीमन के अंतर्गत पर्यावरण में उपलभ्य अवलंबो और अवसरों द्वारा निर्धारित होता है।

3. गार्डनर के द्वारा पहचान की गई बहु - बुद्धि की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। 

उत्तर :

बहु-बुद्धि का सिद्धांत हावर्ड गार्डनर (Howard Gardner) द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उनके अनुसार, बुद्धि कोई एक तत्व नहीं है बल्कि भिन्न - भिन्न प्रकार की बुद्धियों का अस्तित्व होता है। प्रत्येक बुद्धि एक दूसरे से स्वतंत्र रहकर कार्य करती है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति में किसी एक बुद्धि की मात्रा अधिक है तो अनिवार्य रूप से इसका संकेत नहीं करता की उस व्यक्ति में किसी अन्य प्रकार की बुद्धि होगी, कम होगी या कितनी होगी। गार्डनर ने यह भी बताया की किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की बुद्धियाँ आपस में अंतःक्रिया करते हुए साथ साथ कार्य करती हैं। अपने अपने क्षेत्र असाधारण योग्यताओं का प्रदर्शन करने वाले अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्तियों का गार्डनर ने अध्ययन किया और इसके आधार पर 8 प्रकार की बुद्धियों का वर्णन किया। ये निम्नलिखित हैं :

  1. भाषागत (linguistic)( भाषा के उत्पादन और उपयोग के कौशल) - यह अपने विचारों को प्रकट करने तथा दूसरे व्यक्तियों के विचारों को समझने हेतु प्रवाह तथा नम्यता के साथ भाषा का उपयोग करने की क्षमता है।
  2. तार्किक-गणितीय (logical-mathematical)(वैज्ञानिक चिंतन तथा समस्या समाधान के कौशल) - इस प्रकार की बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति तार्किक तथा आलोचनात्मक चिंतन कर सकते हैं। वे अमूर्त तर्कना कर लेते हैं और गणितीय समस्याओं के हल के लिए प्रतीकों का प्रहस्तन अच्छी प्रकार से कर लेते हैं।
  3. देशिक (spatial)( दृश्य बिंब तथा प्रतिरूप निर्माण के कौशल) - यह मानसिक बिंबों को बनाने, उनका उपयोग करने तथा उनमें मानसिक धरातल पर परिमार्जन करने की योग्यता है। इस बुद्धि को अधिक मात्रा में रखने वाला व्यक्ति सरलता से देशिक सूचनाओं को मस्तिष्क में रख सकता है।
  4. संगीतात्मक (musical)( सांगीतिक लय तथा अभिरचनाओं के प्रति संवेदनशीलता) - सांगीतिक अभिरचनाओं को उत्पन्न करने, उनका सर्जन तथा प्रहस्तन करने की क्षमता सांगीतिक योग्यता कहलाती है। इस बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग ध्वनियों और स्पंदनो तथा ध्वनियों की नहीं अभिरचनाओं के सर्जन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
  5. शारीरिक-गतिसंवेदी (bodily-kinaesthetic)( संपूर्ण शरीर अथवा उसके किसी अंग की लोच का उपयोग करना तथा उसमें सर्जनात्मकता प्रदर्शित करना) - किसी वस्तु अथवा उत्पाद के निर्माण के लिए अथवा मात्र शारीरिक प्रदर्शन के लिए संपूर्ण शरीर अथवा उसके किसी एक या एक से अधिक अंग की लोच तथा पेशीय कौशल की योग्यता शारीरिक-गतिसंवेदी योग्यता कही जाती है।
  6. अन्तर्व्यक्तिक (interpersonal)( दूसरे व्यक्तियों के सूक्ष्म व्यवहारों के प्रति संवेदनशीलता) - इस योग्यता द्वारा व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों की अभिप्रेरणाओं या उद्देश्यों भावनाओं तथा व्यवहारों का सही बोध करते हुए उनके साथ मधुर संबंध स्थापित करता है। 
  7. अंतःव्यक्ति (intrapersonal)( अपनी निजी भावनाओं, अभिप्रेरणाओं तथा इच्छाओं की अभिज्ञता) - इस योग्यता के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी शक्ति तथा कमजोरियों का ज्ञान और उस ज्ञान का दूसरे व्यक्तियों के साथ सामाजिक अंतः क्रिया मैं उपयोग करने का ऐसा कौशल सम्मिलित है जिससे वह अन्य व्यक्तियों से प्रभावी संबंध स्थापित करता है।
  8. प्रकृतिवादी (naturalistic)( पर्यावरण के प्राकृतिक पक्ष की विशेषताओं के प्रति संवेदनशीलता) - इस बुद्धि का तात्पर्य प्राकृतिक पर्यावरण से हमारे संबंधों की पूर्ण अभिज्ञता से है। विभिन्न पशु पक्षियों तथा वनस्पतियों के सौंदर्य का बोध करने में तथा प्राकृतिक पर्यावरण में सूक्ष्म विभेद करने में या बुद्धि सहायक होती है।
4. किस प्रकार त्रिचापीय सिद्धांत बुद्धि को समझने में हमारी सहायता करता है ?

उत्तर :

रॉबर्ट स्टर्नबर्ग(1985) ने बुद्धि का त्रिचापीय सिद्धांत प्रस्तुत किया। स्टर्नबर्ग के अनुसार "बुद्धि वह योग्यता है जिससे व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होता है, अपने तथा अपने समाज और संस्कृति के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु रेन के कुछ पक्षों का चयन करता है और उन्हें परिवर्तित करता है"। इस सिद्धांत के अनुसार मूल रूप से बुद्धि तीन प्रकार की होती है - घटकीय, आनुभविक तथा सान्दर्भिक।

 घटकीय बुद्धि (componential intelligence)- घटकीय या विश्लेषणात्मक बुद्धि द्वारा व्यक्ति किसी समस्या का समाधान करने के लिए प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करता है। इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले लोग विश्लेषणात्मक तथा आलोचनात्मक ढंग से सोचते हैं। इस बुद्धि के भी तीन अलग - अलग घटक होते हैं जो अलग - अलग कार्य करते हैं। पहला घटक ज्ञानार्जन से संबंधित होता है। दूसरा घटक एक उच्चस्तरीय घटक होता है। तीसरा घटक निष्पादन से संबंधित होता है। 

आनुभविक बुद्धि (experiential intelligence)- आनुभविक या सृजनात्मक बुद्धि वह बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति नई समस्या के समाधान हेतु अपने पूर्व अनुभवों का सर्जनात्मक रूप से उपयोग करता है। इस बुद्धि की उच्च मात्रा रखने वाले लोग विगत अनुभवों को मौलिक रूप से समाकलित करते हैं तथा समस्या के मौलिक समाधान खोजते हैं। 

सान्दर्भिक बुद्धि (contextual intelligence)- सान्दर्भिक या व्यवहारिक बुद्धि वह बुद्धि है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में आने वाली पर्यावरणीय मांगों से निपटता है। इस बुद्धि की अधिक मात्रा रखने वाले व्यक्ति अपने वर्तमान पर्यावरण से शीघ्र अनुकूलित हो जाते हैं या फिर वर्तमान पर्यावरण की अपेक्षा अधिक अनुकूल पर्यावरण का चयन कर लेते हैं या फिर अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप पर्यावरण में वांछित परिवर्तन कर लेते हैं। स्टर्नबर्ग का त्रिचापीय सिद्धांत बुद्धि को समझने के लिए सूचना प्रक्रमण उपागम के अंतर्गत आने वाले सिद्धांतों का एक प्रतिनिधि सिद्धांत है। 

5. "प्रत्येक बौद्धिक क्रिया तीन तंत्रिकीय तंत्रों के स्वतंत्र प्रकार्यों को सम्मलित करती है।" पास मॉडल के सन्दर्भ में उक्त कथन की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर :

बुद्धि के इस मॉडल को जे.पी. दास, जैक नागलिरी, तथा किर्बी (1994) ने विकसित किया। संक्षेप में या मॉडल 'PASS' (planning, attention, simultaneous, and successive) के नाम से जाना जाता है। इस मॉडल के अनुसार बौद्धिक क्रियाएं अन्योन्याश्रित तीन तंत्रिकीय या स्नायुविक तंत्रों की क्रियाओं द्वारा संपादित होती है। इन तीन तंत्रों को मस्तिष्क की तीन प्रकार्यात्मक इकाइयां कहा जाता है। यह तीन इकाइयां क्रमशः भाव प्रबोधन/अवधान, कूट संकेतन या प्रक्रमण और योजना-निर्माण का कार्य करती है। 

भाव प्रबोधन/अवधान(arousal/attention) - भाव प्रबोधन की दशा किसी भी व्यवहार के मूल में होती है क्योंकि यही किसी उद्दीपक की ओर ध्यान आकर्षित कराती है। भाव प्रबोधन तथा अवधान ही व्यक्ति को सूचना का प्रक्रमण करने योग्य बनाता है। भाव प्रबोधन के इष्टतम स्तर के कारण हमारा ध्यान किसी समस्या के प्रासंगिक की ओर आकृष्ट होता है जब आपके अध्यापक कहते हैं कि अमुक दिन आपकी परीक्षा ली जाएगी तो आपका भाव प्रबोधन बढ़ जाता है आप विशिष्ट अध्यायों पर अधिक ध्यान देने लगते हैं आप का भाव प्रबोधन आपके ध्यान को प्रासंगिक अध्यायो की विषय वस्तुओं को पढ़ने, दोहराने तथा सीखने के लिए अभी प्रेरित करता है। 

सहकालिक तथा आनुक्रमिक प्रक्रमण (simultaneous and successive processing) - विभिन्न संप्रत्ययों को समझने के लिए उनके पारस्परिक संबंधों का प्रत्यक्षण करते हुए उनको एक सार्थक प्रतिरूप में समाकलित करते समय सहकालिक प्रक्रमण होता है। आनुक्रमिक प्रक्रमण उस समय होता है जब सूचनाओं को एक के बाद एक क्रम से याद रखना होता है ताकि एक सूचना का पुनः स्मरण ही अपने बाद वाली सूचना का पुनःस्मरण करा देता है। गिनती सीखना, वर्णमाला सीखना, गुणन सारणीओं को सीखना, आदि आनुक्रमिक प्रक्रमण के उदाहरण है। 

योजना (planning) - योजना बुद्धि का एक आवश्यक अभिलक्षण है जब किसी सूचना की प्राप्ति और उसके पश्चात उसका प्रक्रमण हो जाता है तो योजना सक्रिय हो जाती है। योजना के कारण हम क्रियाओं के समस्त संभावित विकल्पों के बारे में सोचने लगते हैं, लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योजना को कार्यान्वित करते हैं, तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न परिणामों की प्रभाविता का मूल्यांकन करते हैं। यदि कोई योजना इष्ट फलदायक नहीं होती तो या स्थिति की मांग के अनुरूप उसमें संशोधन करते हैं। उपर्युक्त तीनों पास प्रक्रियाएं औपचारिक रूप से( पढ़ने लिखने तथा प्रयोग करने) पर्यावरण से अनौपचारिक रूप से संकलित ज्ञान के भंडार पर कार्य करती है। इन प्रक्रियाओं का स्वरूप अंतः क्रियात्मक तथा गतिशील होता है। इसके बावजूद इनके अपने स्वतंत्र अस्तित्व तथा विशिष्ट प्रकार्य होते हैं।

6. क्या बुद्धि के संप्रत्ययीकरण में कुछ सांस्कृतिक भिन्नताएँ होती है ?

उत्तर :

संस्कृति रीति - रिवाजों , विश्वासों , अभिवृत्तियों तथा कला और साहित्य में उपलब्धियों की एक सामूहिक व्यवस्था को कहते है। इन सांस्कृतिक प्राचालों के अनुरूप ही किसी व्यक्ति की बुद्धि के ढलने की संभावना होती है। अनेक सिद्धांतकार बुद्धि को व्यक्ति की विशेषता समझते है और व्यक्ति की सांस्कृतिक पृष्ठ्भूमि की अपेक्षा कर देते है परन्तु अब बुद्धि के सिद्धांतों में संस्कृति की अनन्य विशेषताओं को भी स्थान मिलने लगा है। स्टर्नबर्ग के सांदर्भिक अथवा व्यव्हारिक बुद्धि का अर्थ यह है कि बुद्धि संस्कृति का उत्पादन होती है। वाईगोट्स्की का भी विश्वास था कि व्यक्ति की तरह संस्कृति का भी अपना एक जीवन होता है , संस्कृति का भी विकास होता है और उसमे परिवर्तन होता है। इसी प्रक्रिया में संस्कृति ही निर्धारित करती है कि अंततः किसी व्यक्ति का बौद्धिक विकास किस प्रकार का होगा। वाईगोट्स्की के अनुसार , कुछ प्रारंभिक मानसिक प्रक्रियाएँ (जैसे - सूँघना , दौड़ना , चलना इत्यादि ) जैसे - समस्या का समाधान करने तथा चिंतन करने आदि की शैलिया मुख्यतः संस्कृति का प्रतिफल होती है। 

तकनीकी रूप से विकसित समाज के व्यक्ति ऐसी बाल - पोषण नीतियाँ अपनाते है जिससे बच्चों में सामान्यीकरण तथा अमूर्तकारन , गति , न्यूनतम  प्रयास करने तथा मानसिक स्तर पर वस्तुओं का प्रहस्त्र करने की क्षमता विकसित हो सके। ऐसे समाज बच्चों में एक विशेष प्रकार के व्यव्हार के विकास को बढ़ावा देते है जिसे हम तकनीकी - बुद्धि कह सकते है। ऐसे समाजों में व्यक्ति अवधान देने , प्रेक्षण करने , विश्लेषण करने , अच्छा निष्पादन करने , तेज काम करने तथा उपलब्धि की ओर उन्मुख रहने आदि कौशलों की परीक्षा की जाती है। 

एशिया तथा अफ्रीका के अनेक समाजों में तकनीकी बुद्धि को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता। एशिया तथा अफ्रीका की संस्कृतियों में पश्चिमी देशों की अपेक्षा पूर्णतः भिन्न गुणों तथा कौशलों को बुद्धि का परिचायक माना जाता है। गैर - पश्चिमी संस्कृतियों में व्यक्ति की अपनी संज्ञानात्मक सक्षमता के साथ - साथ उसमे समाज के दूसरे व्यक्तियों के साथ सामाजिक संबंध बनाने के कौशलों को भी बुद्धि का लक्षण माना जाता है। कुछ गैर - पश्चिमी समाजों में समाज - केंद्रित तथा सामूहिक उन्मुखता पर बल दिया जाता है। 

7. बुद्धि लब्धि क्या है ? किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि लब्धि प्राप्तांकों के आधार पर लोगों को वर्गीकृत करते है ?

उत्तर :

 1912 में एक जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम स्टर्न ने बुद्धि लब्धि संप्रत्यय विकसित किया। किसी व्यक्ति की मानसिक आयु को उसकी कालानुक्रमिक आयु से भाग देने के बाद उसको 100 से गुणा करने से उसकी बुद्धि लब्धि प्राप्त हो जाती है। बुद्धि लब्धि = मानसिक आयु ÷ कालानुक्रमिक आयु × 100 गुणा करने में 100 की संख्या का उपयोग दशमलव बिंदु समाप्त करने के लिए किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की मानसिक आयु तथा कालानुक्रमिक आयु बराबर हो तो उसकी बुद्धि लब्धि 100 प्राप्त होती है। यदि मानसिक आयु कालानुक्रमिक आयु से अधिक हो तो बुद्धि लब्धि 100 से अधिक प्राप्त होती है। बुद्धि लब्धि 100 से कम उस दशा में प्राप्त होती है जब मानसिक आयु कालानुक्रमिक आयु से कम हो। किसी जनसंख्या की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक का माध्य होता है। जिन व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि प्राप्तांक 90 से 110 के बीच होती है उन्हें सामान्य बुद्धि वाला कहा जाता है। जिनकी बुद्धि लब्धि 70 से भी कम होती है वे बौद्धिक अशक्तता से प्रभावित समझे जाते हैं और जिनकी बुद्धि लब्धि 130 से अधिक होती है असाधारण रूप से प्रतिभाशाली समझे जाते हैं। सभी व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता एक समान नहीं होती कुछ व्यक्ति असाधारण रूप से तीव्र बुद्धि वाले होते हैं तथा कुछ औसत से कम बुद्धि वाले।

8. किस प्रकार आप शाब्दिक और निष्पादन बुद्धि परीक्षणों में भेद कर सकते है ?

उत्तर :

एक बुद्धि परीक्षण पूर्णतः शाब्दिक, पूर्णतः अशाब्दिक अथवा पूर्णतः निष्पादन परीक्षण हो सकता है। इसके अतिरिक्त कोई बुद्धि परीक्षण इन तीनों प्रकार के परीक्षणों के एकांशो का मिश्रित रूप भी हो सकता है। शाब्दिक परीक्षणों में परीक्षार्थी को मौखिक अथवा लिखित रूप में शाब्दिक अनुक्रिया करनी होती है। इसलिए शाब्दिक परीक्षण केवल साक्षर व्यक्तियों को ही दिया जा सकता है। जबकि निष्पादन परीक्षण में परीक्षार्थी को कोई कार्य संपादित करने के लिए कुछ वस्तुओं या अन्य सामग्रियों का प्रहस्तन करना होता है। एकांशो का उत्तर देने के लिए लिखित भाषा के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के लिए कोह के ब्लॉक डिजाइन परीक्षण लकड़ी के कई घनाकार गुटके होते हैं। परीक्षार्थी को दिए गए समय के अंतर्गत घटकों को इस प्रकार बिछाना होता है कि उनसे दिया गया डिजाइन बन जाए। निष्पादन परीक्षण का एक लाभ यह है कि उन्हें भिन्न भिन्न संस्कृतियों के व्यक्तियों को आसानी से दिया जा सकता है।

9. सभी व्यक्तियों में समान बौद्धिक क्षमता नहीं होती। कैसे अपनी  बौद्धिक योग्यताओं में लोग एक - दूसरे से भिन्न होते है ? व्याख्या कीजिए। 

उत्तर :

बौद्धिक योग्यताओं के आधार पर लोगो की क्षमता अलग होती है और इसी आधार पर उन्हें वर्गीकृत किया जाता है। बौद्धिक योग्यताओं और क्षमताओं के आधार पर ही कोई व्यक्ति किसी काम को अंजाम देता है या किसी समस्या का समाधान करता है। जे.पी दास के अनुसार बुद्धि के अंतर्गत मानसिक प्रयास, दृढ़ निश्चय के साथ की जाने वाली क्रियाएं, अनुभूतियां तथा मत के साथ-साथ ज्ञान, निवेदन करने की योग्यता तथा समझ जैसी संज्ञानात्मक क्षमताएं भी आती हैं। अतः बुद्धि के अंतर्गत संज्ञानात्मक घटक के साथ साथ अभी प्रेरणात्मक तथा भावात्मक घटक भी होते हैं। पश्चिमी विचारक बुद्धि के अंतर्गत मात्र संज्ञानात्मक कौशलों को ही प्राथमिक महत्व का स्वीकार करते हैं। परंतु इसके विपरीत भारतीय परंपरा में अधुल बताएं बुद्धि के अंतर्गत स्वीकार की जाती हैं- संज्ञानात्मक क्षमता (cognitive capacity) संदर्भ की समझ, विभेदन क्षमता, सम्प्रेषण योग्यता और समस्या समाधान योग्यता। सामाजिक क्षमता (social competence) सामाजिक व्यवस्था के लिए सम्मान, दूसरों के प्रति प्रतिबद्धता और चिंता, दूसरो के परिप्रेक्ष्य को सम्मान देना। सांवेगिक क्षमता (emotional competence) आत्म संवेग पर नियमन और आत्म परिविक्षण, शिष्टता, ईमानदारी, आत्म मूल्यांकन और बेहतर आचरण। उद्यमी क्षमता (entrepreneurial competence) धैर्य, प्रतिबद्धता, परिश्रम, लक्ष्य निर्देशित व्यवहार और सतर्कता।

10. आपके विचार से बुद्धि लब्धि और सांवेगिक लब्धि में से कौन - सी जीवन में सफलता से ज्यादा संबंधित होगी और क्यों ?

उत्तर :

"बुद्धि लब्धि व्यक्ति की बुद्धि की मात्रा बताती है और सांवेगिक लब्धि किसी भी व्यक्ति की सांवेगिक बुद्धि की मात्रा बताती है। सांवेगिक बुद्धि का मतलब है सांवेगिक प्रक्रमण कुशलता और सूचना परिशुद्धता। बुद्धि लब्धि यह बताती है कि हर इंसान की बौद्धिक क्षमता अलग अलग होती है। कुछ व्यक्ति असाधारण रूप से तीव्र बुद्धि वाले होते हैं तथा कुछ औसत से कम बुद्धि वाले। बुद्धि परीक्षणों का यह व्यवहारिक उपयोग है कि इनसे बहुत अधिक बुद्धि तथा बहुत कम बुद्धि वाले व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है जीवन में सफलता से सांवेगिक बुद्धि ज्यादा संबंधित है क्योंकि दुनिया की चुनौतियों से निपटना इससे कुशल हो जाता है। इससे शैक्षिक उपलब्धियों में भी लाभ और प्रभाव देखने को मिलता है। सांवेगिक बुद्धि का संप्रत्यय बुद्धि के संप्रत्यय को उसके बौद्धिक क्षेत्र से अधिक विस्तार देता है और संवेगों को भी बुद्धि के अंतर्गत सम्मिलित करता हैं। सांवेगिक बुद्धि अनेक कौशलों जैसे- अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के संवेगों का परिशुद्ध मूल्यांकन, प्रकटीकरण तथा संवेगों का नियमन आदि का एक समुच्चय है। जीवन मे सफल होने के लिए बुद्धि लब्धि और विद्यालय में अच्छा निष्पादन ही काफी नही हैं। आप ऐसे अनेक लोग पाएंगे जो बुद्धि में श्रेष्ठ होते हुए भी जीवन मे सफल नही हैं।

11. 'अभिक्षमता' 'अभिरुचि और बुद्धि' से कैसे भिन्न है ? अभिक्षमता का मापन कैसे किया जाता है ?

उत्तर :

अभिक्षमता विशेष क्षेत्र क्रियाओं की योग्यता है। अभिक्षमता को विशेषताओं के ऐसे संयोजन के रूप में देखा जाता है जिसे कोई व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद विशिष्ट क्षेत्र संबंधी ज्ञान और कौशल अर्जित करके विशिष्ट क्षमता के रूप में प्रदर्शित करता है। बुद्धि का मापन करने की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिकों को बधाई अज्ञात होता है कि समान बुद्धि रखने वाले व्यक्ति भी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशल को भिन्न-भिन्न दक्षता के साथ अर्जित करते हैं। आप अपनी कक्षा में देख सकते हैं कि कुछ बुद्धिमान विद्यार्थी भी कुछ विषयों में अच्छा निष्पादन नहीं कर पाते। जब आपको गणित में कोई समस्या आती है तो आप सहायता चाहते हैं परंतु जब आपको कविता समझने में कठिनाई आती है तो आप अविनाश के पास जाते हैं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की यह विशिष्ठ योग्यताएं तथा कौशल ही अभिक्षमताएं कहलाती हैं। उचित प्रशिक्षण देकर इन योग्यताओं में पर्याप्त अभिवृद्धि की जा सकती है। अभिरुचि का अर्थ है किसी व्यक्ति का किसी क्षेत्र में रुझान और सफलता प्राप्ति की रुचि होना। अभिरुचि किसी विशेष कार्य को करने की वरीयता को कहते हैं अभिक्षमता उस कार्य को करने की संभाव्यता को कहते हैं किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिरुचि हो सकती है परंतु हो सकता है कि उसे करने की अभिक्षमता उसमें ना हो। इसी प्रकार यह भी संभव है कि किसी व्यक्ति में किसी कार्य को करने की अभिक्षमता हो हम तो उसमें उसकी अभिरुचि ना हो। इन दोनों ही दशाओं में उसका निष्पादन संतोषजनक नहीं होगा। एक ऐसे विद्यार्थी की सफल यांत्रिक अभियंता बनने की अधिक संभावना है जिसमें उच्च यांत्रिक अभिक्षमता हो और अभियांत्रिकी में उस अभिरुचि भी हो। अभिक्षमता परीक्षण दो रूपों में प्राप्त होते हैं- स्वतंत्र अभिक्षमता परीक्षण (विशेषीकृत) तथा बहुल अभिक्षमता परीक्षण (सामान्यकृत)। लिपिकीय अभिक्षमता, यांत्रिक अभिक्षमता, आंकिक अभिक्षमता, तथा टंकण अभिक्षमता आदि के परीक्षण स्वतंत्र अभिक्षमता परीक्षण है। बहुल अभिक्षमता परीक्षणों में एक परीक्षण माला होती है जिससे अनेक भिन्न भिन्न प्रकार की परंतु समजातीय क्षेत्रों में अभिक्षमता का मापन किया जाता है।

12. किस प्रकार सर्जनात्मकता बुद्धि से सम्बंधित होती है ?

उत्तर :

सर्जनात्मकता नूतन, उपयुक्त और उपयोगी विचारों, वस्तुओं या समस्या समाधानो को उत्पन्न करने की योग्यता है। सृजनशील होने के लिए एक निश्चित स्तर की बुद्धि का होना आवश्यक है। परंतु किसी व्यक्ति की उच्च स्तरीय बुद्धि फिर भी यह सुनिश्चित नहीं करती है क्यों अवश्य ही सृजनशील होगा। शोधकर्ताओं ने पाया है कि सृजनात्मकता तथा बुद्धि में सकारात्मक संबंध होता है प्रतिक सृजनात्मक कार्य के लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक न्यूनतम स्तर की योग्यता तथा क्षमता की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए सृजनशील लेखकों को उपयोग में दक्षता की आवश्यकता होती है। अतः सृजनात्मकता के लिए एक विशेष मात्रा में बुद्धि का होना आवश्यक है परंतु उस विशेष मात्रा से अधिक बुद्धि का सृजनात्मकता सहसंबंध नहीं होता है। सृजनात्मकता के कई रूप और सम्मिश्रण होते हैं। कुछ व्यक्तियों में बौद्धिक गुण अधिक मात्रा में होते हैं कुछ व्यक्तियों में सृजनात्मकता से संबद्ध विशेषताएं अधिक मात्रा में होती हैं।

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