अवधपुरी में राम - बाल राम कथा कक्षा 6 | Extra Question Answer

 Extra Question Answer : अवधपुरी में राम

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. महाराज दशरथ कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। 

उत्तर :

महाराज दशरथ कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे। वे महाराज अज के पुत्र थे तथा महाराज रघु के वंशज। वे रघुकुल के उत्तराधिकारी थे। रघुकुल की रीति - नीति का प्रभाव हर जगह दिखाई देता था। सुख - समृद्धि से लेकर बात - व्यव्हार तक लोग मर्यादाओं का पालन करते थे और सदाचारी थे। 

प्रश्न 2. मुनि वशिष्ठ ने दशरथ की चिंता मुक्ति का क्या उपाय बताया ?

उत्तर : 

मुनि वशिष्ठ राजा दशरथ की चिंता समझते थे। उन्होंने दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। महर्षि ने कहा , "आप पुत्रेष्टि यज्ञ करें , महाराज ! आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी।"

प्रश्न 3. दशरथ की रानियों ने किन - किन पुत्रों को जन्म दिया ?

उत्तर :

दशरथ की तीनों रानियाँ पुत्रवती हुई। महारानी कौशल्या ने चैत्र माह की नवमी के दिन राम को जन्म दिया। रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए - लक्ष्मण और शत्रुध्न। वही रानी कैकेयी ने एक पुत्र भरत को जन्म दिया। 

प्रश्न 4. दशरथ को राम अधिक प्रिय क्यों थे ?

उत्तर :

दशरथ को राम सबसे अधिक प्रिय थे। राम ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण और मानवीय गुणों से युक्त होने के कारण दशरथ को अधिक प्रिय थे। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. अयोध्या का सौंदर्य वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। 

उत्तर :

अवध में सरयू नदी के किनारे एक अति सुन्दर नगर था - अयोध्या। यह सही अर्थों में दर्शनीय नगर था। भव्यता जैसे उसका दूसरा नाम था। अयोध्या में केवल राजमहल भव्य नहीं था। उसकी एक - एक इमारत आलीशान थी। आम लोगों के घर भी भव्य थे। सड़कें चौड़ी थी। सुन्दर बाग़ - बगीचे , पानी से लबालब भरे सरोवर तथा खेतों में लहराती हरियाली इसकी प्रमुख विशेषताएँ थी। हवा में हिलती फसलें सरयू की लहरों के साथ खेलती थी। अयोध्या हर तरह से संपन्न नगरी था। यहाँ सभी सुखी तथा समृद्ध थे। पूरा नगर विलक्षण था। 

प्रश्न 2. महाराज दशरथ की चिंता का क्या कारण था ?

उत्तर :

महाराज दशरथ को एक दुःख था जो रह - रहकर उभर आता था। उन्हें सालता रहता था। वह दुःख था कि  उनके कोई संतान नहीं थी। उनकी आयु लगातार बढ़ती जा रही थी। उनकी तीन रानियाँ थी। कौशल्या , कैकेयी और सुमित्रा। रानियों के मन भी बस यही एक दुःख था। जिस कारण उन्हें जीवन सूना - सूना लगता था। राजा दशरथ से रानियों की बातचीत प्रायः इसी विषय पर आकर रुक जाती थी। राजा दशरथ की चिंता बढ़ती जा रही थी। 

प्रश्न 3. पुत्रेष्टि यज्ञ का वर्णन अपने  शब्दों में कीजिए। 

उत्तर :

पुत्रेष्टि यज्ञ महान तपस्वी ऋष्यश्रृंग की देखरेख में हुआ। पूरा नगर उसकी तैयारी में लगा हुआ था। सरयू नदी के किनारे यज्ञशाला बनाई गई। यज्ञ में अनेक राजाओं को आमंत्रित किया गया। वहीं अनेक ऋषि - मुनि भी पधारे। शंखध्वनि और मंत्रोच्चार के बीच एक - एक कर सबने आहुति डाली। अंतिम आहुति राजा दशरथ की थी। 

 प्रश्न 4. राजा दशरथ ने अपने पुत्रों की शिक्षा का कैसा प्रबंध किया ?

उत्तर :

बड़े होने पर राजकुमारों को शिक्षा - दीक्षा के लिए भेजा गया। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्ष गुरुजनों से ज्ञान अर्जित किया। शास्त्रों का अध्यन किया तथा शस्त्र विद्या सीखी। चारों राजकुमार कुशाग्र - बुद्धि थे। इस कारण से वे जल्द ही सब विद्याओं में पारंगत हो गए। 

प्रश्न 5. महर्षि विश्वामित्र ने दशरथ से क्या कहा ?

उत्तर :

महर्षि विश्वामित्र ने दशरथ से कहा , "मैं सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहा हूँ। अनुष्ठान लगभग पूरा हो गया है। लेकिन दो राक्षस उसमे बाधा डाल रहे है। मैं जानता हूँ कि उन राक्षसों को केवल एक ही व्यक्ति मार सकता है। वह राम है। आप अपने ज्येष्ठ पुत्र को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो।"

प्रश्न 6. महाराज दशरथ ने राम को  विश्वामित्र के साथ न भेजने के बारे में क्या युक्ति दी ?

उत्तर :

महाराज दशरथ ने राम को विश्वामित्र के साथ न भेजने के लिए यह युक्ति दी - "महामुनि ! मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा ? राक्षस मायावी है। वह उनका छल - कपट कैसे समझेगा ? उन्हें कैसे मारेगा ? इससे अच्छा तो यही होगा कि आप मेरी सेना ले जाएँ। मैं स्वयं आपके साथ चलूँ। राक्षसों से युद्ध करूँ। " साथ ही उन्होंने यह भी कहा - "मैं राम के बिना नहीं रह सकता महामुनि ! एक पल भी नहीं। आप राम को छोड़कर जो चाहे माँग लें। उसे मत ले जाइए। मैं राम को नहीं दूंगा। बिल्कुल नहीं। वह मेरी बुढ़ापे की संतान है। मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ।"

प्रश्न 7. मुनि वशिष्ठ ने दशरथ को क्या कहकर समझाया ?

उत्तर :

मुनि वशिष्ठ ने दशरथ कहा - "राजन , आपको अपना वचन पूरा करना चाहिए। रघुकुल की रीति यही है। प्राण देकर भी आपके पूर्वजों ने वचन निभाया है। आप राम की चिंता न करें। महर्षि के होते उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। " साथ ही वे बोले कि "महाराज , महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष है। तपस्वी है। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार है। वह कुछ सोचकर ही यहाँ आए है। राम उनसे अनेक नई विद्याएँ सीख सकेंगे। आप राम को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने दें। राम को उन्हें सौंप दें।"    

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