गद्यांशों पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
1. मैं तुमसे कुछ इतनी बड़ी हूँ कि तुम्हारी दादी भी हो सकती हूँ , तुम्हारी नानी भी। बड़ी बुआ भी - बड़ी मौसी भी। परिवार में मुझे सभी लोग जीजी कहकर ही पुकारते है।
हाँ , मैं इन दिनों कुछ बड़ा - बड़ा यानी उम्र में सयाना महसूस करने लगी हूँ। शायद इसलिए कि पिछली शताब्दी में पैदा हुई थी। मेरे पहनने - ओढ़ने में काफी बदलाव आए है। पहले मैं रंग - बिरंगी कपडे पहनती रही हूँ। नीला - जामुनी - ग्रे - काला - चॉकलेटी। अब मन कुछ ऐसा करता है कि सफ़ेद पहनो। गहरे नहीं , हलके रंग। मैंने पिछले दशकों में तरह - तरह की पोशाकें पहनी है। पहले फ्रॉक , फिर निकर - वॉकर , स्कर्ट , लहँगे , गरारे और अब चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते।
(i) 'मैं तुमसे कुछ इतनी बड़ी हूँ' - में 'मैं' कौन है ?
- लेखिका
- लेखिका की नानी
- लेखिका की बुआ
- एक औरत
(ii) लेखिका क्या महसूस करने लगी ?
- बचपन
- घबराहट
- सयानापन
- अजीबपन
(iii) किस चीज में काफी बदलाव आए ?
- लेखिका के खाने - पीने में
- लेखिका के पहनने - ओढ़ने में
- लेखिका के उठने - बैठने में
- लेखिका के चलने - फिरने में
- नीले रंग के
- जामुनी रंग के
- ग्रे - काले रेंज के
- सफ़ेद रंग के
- तरह - तरह के व्यंजन खाए।
- तरह - तरह के खेल खेले।
- तरह - तरह की पोशाकें पहनी।
- नए - नए काम किए।
2. बचपन में हमें अपने मोज़े खुद धोने पड़ते थे। वह नौकर या नौकरानी को नहीं दिए जा सकते थे। इसकी सख्त मनाही थी।
हम बच्चे इतवार की सुबह इसी में लगाते। धो लेने के बाद अपने - अपने जूते पॉलिश करके चमकाते। जब जूते कपडे या ब्रश से रगड़ते तो पॉलिश की चमक उभरने लगती।
सरवर , मुझे आज भी बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है। हालाँकि अब नई - नई किस्म के शू आ चुके है। कहना होगा कि ये पहले से कहीं ज्यादा आरामदेह है। हमें जब नए जूते मिलते , उसके साथ ही छालों का इलाज शुरू हो जाता।
जब कभी लम्बी सैर पर निकलते , अपने पास रुई जरूर रखते। जूता लगा तो रुई मोज़े के अंदर। हाँ , हमारे - तुम्हारे बचपन में तो बहुत फर्क हो चूका है।
हर शनीचर को हमें ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना पड़ता। यह एक मुश्किल काम था। शनीचर को सुबह से ही नाक में इसकी गंध आने लगती !
(i) बचपन में लेखिका को क्या करना पड़ता था ?
- अपना काम खुद करना पड़ता था।
- अपने मोज़े खुद धोने पड़ते थे।
- अपना बिस्तर झाड़ना पड़ता था।
- अपना कमरा साफ़ करना पड़ता था।
(ii) लेखिका को आज भी क्या अच्छा लगता है ?
- मोज़े धोना
- घूमना - फिरना
- बूट पॉलिश करना
- नए जूते खरीदना
(iii) लंबी सैर पर निकलते समय लेखिका अपने पास क्या रखती थी ?
- रुई
- पॉलिश
- जूते
- ऑयल
- ऑलिव ऑयल पीना
- कोकोनट ऑयल पीना
- केसर ऑयल पीना
- ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना
- अपने बचपन के दिनों की
- अपने स्कूल के दिनों की
- अपनी जवानी के दिनों की
- अपने वर्तमान के दिनों की
3. हमारे बचपन की कुल्फी आइसक्रीम हो गई है। कचौड़ी - समोसा पैटीज़ में बदल गया है। शहतूत और फाल्से और खसखस के शरबत कोक - पेप्सी में।
उन दिनों कोक नहीं , लैम्नेड , विमटो मिलती थी।
शिमला और नई दिल्ली में बड़े हुए बच्चों को वैंगर्स और डेविको रेस्तराँ की चॉकलेट और पेस्ट्री मज़ा देनेवाली होती। हम भाई - बहनों की ड्यूटी लगती शिमला मॉल से ब्राउन ब्रेड लाने की।
हमारा घर मॉल से ज़्यादा दूर नहीं था। एक छोटी - सी चढ़ाई और गिरजा मैदान पहुँच जाते। वहां से एक उतराई उतरते और मॉल पर। कन्फैक्शनरी काउंटर पर तरह - तरह की पेस्ट्री और चॉकलेट की खुशबू मनभावनी !
हमें हफ्ते में एक बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। सबसे ज़्यादा मेरे पास ही चॉकलेट - टॉफी का स्टॉक रहता। मैं चॉकलेट लेकर खड़े - खड़े कभी न खाती। घर लौटकर साइड बोर्ड पर रख देती और रात के खाने के बाद बिस्तर में लेटकर मज़े ले - ले खाती।
(i) गद्यांश के अनुसार कुल्फी क्या बन गई ?
- रबड़ी
- कसाटा
- गुलकंद
- आइसक्रीम
- ब्राउन ब्रेड लाने की
- ब्रेड लाने की
- समोसे लाने की
- कोक - पेप्सी लाने की
- अजीब
- दिलकश
- मनभावनी
- चमकदार
- खड़े होकर
- बिस्तर पर लेट कर
- चलते - चलते
- बिस्तर पर बैठकर
- तत्सम
- तद्भव
- विदेशी
- देशज
4. शाम को रंग - बिरंगे गुब्बारे। सामने जाखू का पहाड़। ऊँचा चर्च। चर्च की घंटियाँ बजती तो दूर - दूर तक उनकी गूंज फ़ैल जाती। लगता , इसके संगीत से प्रभु इशू स्वयं कुछ कह रहे है।
सामने आकाश पर सूर्यास्त हो रहा है। गुलाबी सुनहरी धारियाँ नीले आसमान पर फ़ैल रही है। दूर - दूर फैले पहाड़ों के मुखड़े गहराने लगे और देखते - देखते बत्तियॉँ टिमटिमाने लगी। रिज पर की रौनक और मॉल की दुकानों की चमक के भी क्या कहने ! स्कैंडल पॉइंट की भीड़ से उभरता कोलाहल।
सरवर , स्कैंडल पॉइंट के ठीक सामने उन दिनों एक दुकान हुआ करती थी , जिसके शोरूम में शिमला - कालका ट्रैन का मॉडल बना हुआ था। इसकी पटरियाँ उस पर खड़ी छोटे - छोटे डिब्बों वाली ट्रेन। एक ओर लाल टीन की छतवाला स्टेशन और सामने सिग्नल देता खम्बा - थोड़ी - थोड़ी दूर पर बनी सुरंगें !
पिछली सदी में तेज रफ़्तारवाली गाड़ी वही थी। कभी - कभी हवाई जहाज भी देखने को मिलते। दिल्ली में जब भी उनकी आवाज आती , बच्चे उन्हें देखने बाहर दौड़ते। दिखता एक भारी - भरकम पक्षी उड़ा जा रहा है पंख फैलाकर। यह देखो और वह गायब ! उसकी स्पीड ही इतनी तेज लगती। हाँ , गाड़ी के मॉडलवाली दुकान के साथ एक और ऐसी दुकान थी जो मुझे कभी नहीं भूलती। यह वह दुकान थी जहाँ मेरा पहला चश्मा बना था। वहाँ आँखों के डॉक्टर अंग्रेज थे।
(i) चर्च की घंटियाँ बजने पर लेखिका को क्या लगता है ?
- प्रभु इशू कुछ कह रहे है।
- पूजा - पाठ हो रहा है।
- सुबह हो गई है।
- संगीत फ़ैल रहा है।
- शांत
- गंभीर
- मनभावन
- कोलाहल
- पटरियाँ
- शिमला - कालका ट्रेन मॉडल
- ट्रेन के डिब्बे
- छोटी - छोटी सुरंगें
- घर में छिप जाते
- चुपचाप बैठ जाते
- उन्हें देखने दौड़ते
- लड़ाई झगड़ा करते
- जहाँ उसका चश्मा बना था।
- जहाँ रेल का मॉडल रखा था।
- जहाँ से वह जूस पीती थी।
- जहाँ बत्तियाँ जलती थी।