मैथिलीशरण गुप्त - मनुष्यता
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये -
1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ?
उत्तर :
कवि ने यशस्वी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है। जिस मृत्यु को सभी याद करें , जो परोपकार के कारण सम्माननीय हो , वह सुमृत्यु है।
2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है ?
उत्तर :
उदार व्यक्ति की पहचान यह है कि वह इस असीम संसार को अखंड रूप से अपना मानता है। वह जाति , देश या रंग का भेद किए बिना सबको आत्मीय मानता है।
3. कवि ने दधीची , कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर 'मनुष्यता' के लिए क्या सन्देश दिया है ?
उत्तर :
कवि ने दधीची , कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर सारी मनुष्यता को त्याग और बलिदान का सन्देश दिया है। दधीची ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ तक दान में दे दी थी। कर्ण ने ब्राह्मण के माँगने पर अपना जन्मजात स्वर्ण - कवच तक दान में दे दिया था। उशीनर ने कबूतर के बदले अपने शरीर का माँस दे दिया था। रंतिदेव ने भूखे अतिथियों के लिए अपने हिस्से का भोजन उन्हें दे दिया था। इस प्रकार ये महापुरुष हमें आत्म - त्याग और मानव - सेवा का पाठ पढ़ाते है।
4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व - रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए ?
उत्तर :
निम्न पंक्तियों में गर्व - रहित जीवन जीने की प्रेरणा दी गई है -
5. 'मनुष्य मात्र बंधू है' से आप क्या समझते है ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर :
इसका अर्थ है - संसार के सभी मनुष्य हमारे बंधु है , अपने है , भ्रातृवत है। विश्व का कोई भी प्राणी हमारे लिए पराया , बेगाना , विजातीय या शत्रु नहीं है।
6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है ?
उत्तर :
कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी प्राणी मूलतः एक हैं। वे एक ही पिता की संतान है। पूरी मानवता एक है। दूसरे , मनुष्य का धर्म है कि वह दूसरों को भी उठाने , बढ़ाने और तारने के काम आए। कवि के शब्दों में -
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे।
7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए ? इस कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
यह कविता हमें सन्देश देती है कि हमें दूसरों के काम आना चाहिए। हमें स्वार्थ को को तिलांजलि देकर पूरी मानव - जाति के लिए जीना चाहिए। हमें पूरे संसार को अपना बंधु मानना चाहिए। हम जहाँ भी दुःख - दर्द देखें , वहीं करुणा , दया और परोपकार का व्यव्हार करें। हम धन का घमंड न करें। भूलकर भी मानव - मानव में अलगाव पैदा न करें। जहाँ तक हो सके , हम सभी में मेलजोल बढ़ाने का प्रयत्न करें।
8. 'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहता है ?
उत्तर :
'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि मानवता , एकता , सहानुभूति , सद्भाव , उदारता और करुणा का सन्देश देना चाहता है। वह मनुष्य को स्वार्थ , भिन्नता , वर्गवाद , जातिवाद , संप्रदायवाद आदि संकीर्णताओं से मुक्त करना चाहता है। वह मनुष्य में उदारता के भाव भरना चाहता है। कवि चाहता है कि हर मनुष्य समस्त संसार में अपनत्व की अनुभूति करे। वह दुखियों , वंचितों और जरूरतमंदों के लिए बड़े - से - बड़ा त्याग करने को भी तैयार हो। वह कर्ण , दधीचि , रंतिदेव आदि के अतुल त्याग से प्रेरणा ले। वह अपने मन में करुणा का भाव जगाए। वह अभिमान , लालच और अधीरता का त्याग करे। एक - दूसरे का भी सूरत में अलगाव और भिन्नता को हवा नहीं देनी चाहिए।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
उत्तर :
लेखक कहता है - मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है - सहानुभूति की भावना। यदि मनुष्य में करुणा और सहानुभूति हो तो सारी पृथ्वी उसकी मुट्ठी में हो जाती है। संसार के सब लोग उसका सम्मान करने लगते है। भगवान बुद्ध ने अपने समय की सारी परम्पओं का विरोध किया। इससे लोग बहुत क्षुब्ध हुए। उन्होंने बुद्ध का हर प्रकार से विरोध किया। परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा का प्रवाह बहाया तो उनका सारा विरोध बह गया। समाज के सभी वर्ग उनकी करुणा के सामने झुक गए। वे बुद्ध के अनुयायी बन गए।
उत्तर :
कवि कहता है - मनुष्य को भूलकर भी धन का घमंड नहीं करना चाहिए। धन बहुत तुच्छ उपलब्धि है। कई लोग धन के कारण स्वयं को सुरक्षित और सनाथ मानने की भूल कर बैठते है। तब उनका चित्त गर्व से मदहोश हो जाता है। परन्तु सच यह है कि इस दुनिया में सभी सनाथ है। सब पर ईश्वर की कृपा है। कोई प्राणी अनाथ नहीं है। वह भगवान बहुत करुणावान है। वह गरीबों पर दया करता है। उसकी शक्ति अपरंपार है। अतः हमें ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए , सांसारिक धन - संपत्ति पर नहीं।
उत्तर :
कवि मनुष्य को एकता का पाठ पढ़ाते हुए कहता है - तुम अपने - अपने लक्ष्य के अनुसार जियो। जीवन को उत्साह और प्रसन्नता से जियो। रास्ते में जो भी संकट या बाधाएँ आएँ , उन्हें दूर करते हुए चलो। परन्तु एक बात ध्यान में अवश्य रखो। जीवन में कोई भी ऐसा काम न करो जिससे मानव - मानव की आपसी एकता पर आँच आए। आपसी मेलजोल में कमी आए तथा अलगाव बढे। हम चाहे किसी भी पंथ , मत या संप्रदाय में दीक्षित हों , किन्तु भूलकर भी एकता के भाव पर चोट न पहुँचाएँ। मानव की मूलभूत एकता में कमी न आने दें।
योग्यता विस्तार
1. अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव , दधीचि , कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कजिए।
उत्तर :
छात्र स्वयं करें।
2. 'परोपकार' विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
परीक्षापयोगी नहीं है।
परियोजना कार्य
1. अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कविता 'कर्मवीर' तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
छात्र स्वयं करें।
2. भवानी प्रसाद मिश्र की 'प्राणी वही प्राणी है' कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर :
परीक्षापयोगी नहीं है।