NCERT Solution : कविता 2 - मीरा , कक्षा 10 हिंदी (स्पर्श)
प्रश्न - अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नो के उत्तर दीजिये -
- स्वयं को हरि का 'अपना जन' कहा है , जिससे हरि उसे अपना समझ कर कृपा करें।
- हरि से अपना उद्धार करने की गुहार लगाई है - 'हरो म्हारी भीर' .
- हरि को उसके रक्षक रूप की याद दिलाई है। कभी उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी। भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और डूबते हुए गजराज को बचाया था। इसलिए वे मीरा का भी उद्धार करें।
राजस्थानी और ब्रज का सम्मिश्रण - ब्रज भाषा स्वाभाव से ही मीठी है। उसमे आई 'ओ' ध्वनि पाठकों के चित्त को मोह लेती है। यथा - बढ़ायो , हिवड़ो , घणो आदि। राजस्थानी 'रा' , 'रे' , 'री' ध्वनियाँ भी 'का' , 'के' , 'की' की बजाय अधिक कोमल बन पड़ी है। राजस्थान में 'र' व्यंजन की बहुलता है। मीरा के पदों में यह विशेषता बहुत अधिक है। अनुनासिकता की प्रवृति ने भाषा में मिठास ही घोल दी है। देखिये - पास्यूँ , म्हाँने , तीरां , अधीराँ।
निजवाचक भाषा - मीरा ने इस पद में स्वयं अपनी अनुभूतियों को व्यक्त किया है। इसलिए 'हरो म्हारी पीर' , नित उठ दरसण पास्यूँ' , 'म्हाने चाकर राखो जी' आदि निजवाचक शब्दों से भाषा में सरसता आ गई है।
संगीतमयता - मीरा के ये पद गाने के लिए लिखे गए है। अतः इनमे स्वर - संधान बहुत कुशल है। एक - एक शब्द संगीत की खराद पर तराशा हुआ है। स्वर को लम्बा खींचने के लिए दीर्घ स्वरों का अधिक प्रयोग किया गया है। उदाहरणतया - म्हाँने चाकर राखो जी।
प्रयायवाची शब्दों की बहुलता - मीराबाई ने कृष्ण के लिए विविध शब्दों का प्रयोग किया है। यथा - हरि , गिरधर , मोहन , गोविन्द , मुरलीवाला आदि।
शैली - मीरा की शैली को गीत शैली कहा जा सकता है। इसमें निजता , अनुभूतिशीलता , संक्षिप्तता , मधुरता और संगीतात्मकता के दर्शन होते है। ये सभी पद गेय है।
- इसमें भगवान के भक्त - वत्सल और भक्त - रक्षक रूप का चित्रण हुआ है। मीरा ने प्रभु को उस प्रसंग की याद दिलाई है , जब उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी तथा प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह - रूप धारण किया था। इन प्रसंगों से भगवान का भक्त - रक्षक रूप साकार हो उठा है।
- इसमें मीरा की विनयपूर्ण गुहार भी बहुत मर्मस्पर्शी बन पड़ी है। वे प्रभु को 'अपनेपन' का वास्ता देकर रक्षा के लिए प्रार्थना करती है।
- भाषा में ब्रज की मधुरता और राजस्थानी पुट का सम्मिश्रण हो गया है। 'री' में राजस्थानी प्रभाव है। 'बढ़ायो' और 'धरयो' में ब्रज का प्रभाव स्पष्ट है।
- भाषा में कोमलता लाने के लिए 'शरीर' का 'सरीर' , 'भक्त' का 'भगत' कर दिया गया है।
- पूरा पद गेय है।
- 'र' की ध्वनि के कारण कविता में अद्भुत माधुर्य आ गया है।
- इसमें भगवान के भक्त - वत्सल और भक्त - रक्षक रूप का चित्रण हुआ है। मीरा ने प्रभु को उस प्रसंग की याद दिलाई है , जब उन्होंने डूबते हुए हाथी को मगरमच्छ की पकड़ से बचाया था। इसी प्रसंग में उन्होंने उनसे अपनी रक्षा के लिए भी गुहार लगाई है।
- मीरा की गुहार में पूर्ण समर्पण और याचना है। वे स्वयं को गिरधर कृष्ण की दासी कहती है। इसी दास्य भाव से वे अनुनय करती है - 'हरो म्हारी भीर'
- मीरा ने कृष्ण को 'गिरधर' नाम से ठीक ही पुकारा है। उनका यह रूप जन - रक्षक रूप की याद दिलाता है।
- पुरे पद में 'र' वर्ण की आवृति अत्यंत मनोरम बन पड़ी है।
- 'काटी कुण्जर पीर' में 'क' की आवृति के कारण अनुप्रास है।
- 'गिरधर हरो म्हारी भीर' में 'र' की आवृति के कारण अनुप्रास है।
- ब्रज की मधुरता और राजस्थानी रकार मिलकर अद्भुत प्रभाव उत्पन्न कर रहे है।
- इसमें रूपक अलंकार का सौंदर्य देखते ही बनता है। 'सुमरण' पर 'खरची' का आरोप है। 'भाव भगती' पर 'जागीरी' का आरोप है।
- 'भाव भगती' में अनुप्रास है।
- इसमें ब्रज तथा राजस्थानी भाषा का अद्भुत मेल है।
- भाषा को संगीत के अनुकूल बनाने के लिए कोमल तथा चिकना किया गया है।
- इसमें मीरा की विनय - भक्ति और समर्पणशीलता प्रकट हुई है। वे स्वयं को कृष्ण की चाकर बनाने के लिए तैयार है।
- चीर ..........................
- धरयो ........................
- कुण्जर ......................
- बिन्दरावन ..................
- रहस्यूँ ........................
- राखो ........................
- बूढ़ता .......................
- लगास्यूँ ....................
- घणा ........................
- सरसी ......................
- हिवड़ा .....................
- कुसुम्बी ...................
- चीर - वस्त्र
- धरयो - धारण किया।
- कुण्जर - हाथी , हस्ती , करि।
- बिन्दरावन - वृन्दावन।
- रहस्यूँ - रहूँगी / रहेंगे।
- राखो - रक्षा करो।
- बूढ़ता - डूबता।
- लगास्यूँ - लगाऊँगी / लगाएंगे
- घणा - बहुत
- सरसी - पूरी हुई , सम्पूर्ण हुई।
- हिवड़ा - हिय , हृदय , दिल।
- कुसुम्बी - लाल।
- मत्स्य
- कूर्म
- वराह
- वामन
- नृसिंह
- परशुराम
- राम
- कृष्ण
- बुद्ध
- कल्कि